बिछड़े नहीं पर दूर तो हैं,
इन दिनों कुछ मजबूर तो हैं!
सिर्फ जरूरत की बात नहीं
एक दूजे को जरूर जो हैं!
चौबिसों घन्टे की मुलाकातें
ख़ासे हम मसरूफ जो हैं!
उनसे ही हैं बातें सारी
कैसे कह दें दूर से हैं?
हम कहते वो हूर से हैं,
हम उनको लंगूर से हैं!
वो ही नाइत्तफाकी हर बात
यूँ एक दूजे के मंजूर से हैं!
इतना तज़ुर्बा है एक दूजे का,
दूरियों से कहाँ उनसे दूर से हैं?
बात करने की गुज़रिशें उनकी
हमको कब बोली के शऊर हैं?
तसल्ली है सो वो अपनी जगह,
नज़दीक और भी पहलू हुज़ूर हैं!
होने से मेरे मौसम नहीं बदलते,
जरूरत में हवा का झोंका जरूर हैं!
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