और निसर्ग से हमें क्या संदेश हैं? जैसी मर्ज़ी यही हमारे आवेश हैं? घमंड है सभ्यता का, बड़ा तैश है!
आने वाले कल के बच्चों को क्या सिखाएं?बेहतर नहीं, के वो इस दुनिया न आएं?
संविधान की जरूरत है खूब सवाल कीजिए,
गद्दार है जो कहे,"ख़बरदार! जो मज़ाल कीजिए"!
नाइंसाफी मंज़ूर हो अगर ये देशभक्ति है?
तो एक नाम मेरा भी लिस्ट में जोड़ दीजिए!
देशद्रोहीयों की !
इंटरनेट, बुलेट ट्रेन, ई_कैश, उ कैश,
ये विकास है?
या सोच समझ चेतना संवेदना कितनी अपने पास है?
फिक्र नहीं इसकी कि ख़ाक हुए जाते हैं,
सच है साथ सो बेबाक़ हुए जाते हैं!
क्या आप को नफ़रत के बाज़ार नज़र आते हैं?
सच लगते हैं आपको संदेश जो व्हाट्सएप से आते हैं?
इंसानी हुक़ूक़ की बात कोई जंग नहीं है,
आज की दुनिया को ये सोच तंग नहीं है?
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