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आज़ादी के गुलाम!


किसकी मज़ाल की आज़ादी पर सवाल करे,
पुलिस, अफसर, जज, पत्रकार सब साथ हैं!

कश्मीर से आज़ाद हैं? कश्मीर में आज़ाद हैं? 
कश्मीर के आज़ाद हैं? या क्या फ़र्क पड़ता है?

भारत की सरकार आज पूरी आज़ाद है, 
जिम्मेदारी से, जवाबदेही से, रामकृपा!


ऐसी भी क्या आज़ादी के ख़ामोश बैठे हैं, 
सब जानते समझते बोलती बंद हो गई?

सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, या कोई दरबारी? 
किस को न्याय है किसकी तरफ़दारी?


सहूलियत की जंजीरें कैसे तोड़ दें, 
आज़ादी के लिए कैसे मस्ती छोड़ दें!

खामोशी आज़ाद है, सवालों को कैद है, 
क़ातिल आज़ाद है बेगुनाह सूली चढ़ें!


चुप रहिए कि आप आज़ाद हैं, 
बोलने वाले सब बरबाद हैं!

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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