कितने हम तरक्क़ी से ग़ुमराह हुए हैं,
आँख सामने हमारे सारे गुनाह हुए हैं!
भगवान के नाम पर इंसानियत खारिज़ है,
भक्ति में कैसे कैसे आज गुनाह हुए हैं?
नफ़रत ने सबको एकराय कर दिया,
खुलेआम सड़क पर गुनाह हुए हैं!
मार देने को अब इंसाफ कहतें हैं,
इंसाफ के नाम पर गुनाह हुए हैं!
कानून बिक गया ओ इंसाफ डर गया,
बढ़ी ठाट से इन दिनों गुनाह हुए हैं!
मक्खियों माफ़िक भिनभिनाते हैं अंधभक्त,
शाह_ई इशारों से आजकल गुनाह हुए हैं!
लाखों चुप्पियों को कैसे शराफ़त कह दें !
चुप हैं इसलिए क्योंकि गुनाह हुआ है!
मस्ज़िद को तोड़ कर मंदिर बनाते हैं,
बड़ा धार्मिक इनदिनों गुनाह हुआ है!
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