वक्त टूट कर बिखरा पड़ा है,
कहीं छोटा कहीं बड़ा है,
'तर', कहीं प्यासा पड़ा है,
आख़िर में चिकना घड़ा है,
कोई भी लम्हा
कब तड़प उठता है,
कोई पल मुँह बाएं खड़ा है,
कोई घड़ी,
हाथ से फिसलती है,
कोई सदी बन टिकी है,
कोई इंतज़ार उम्र होता है,
कोई पलक झपकते गुम,
और इस खेल में
कहाँ हैं हम?
कभी वक्त फ़ायदा है,
कभी सारी मुसीबतों की जड़,
कभी हाथ नहीं आता,
समय, कभी मौसम
बन छा जाता है,
किसी को रास नहीं,
किसी को भा जाता है?
किसी के गले तलवार,
किसी के लिए घुड़सवार,
किसी के पास समय नहीं,
बिल्कुल भी, वक्त
किसी का बचा नहीं,
हमें कुछ हो,
समय का क्या जाता है,
बेशर्म!
वही अपने रास्ते चला,
वक्त बहुरूपिया है,
हर पल, घड़ी, लम्हा
युग, काल,
बदलता है,
फिर भी,
रुका है किसी के लिए,
किसी को लगे
चलता है!
बदल रहे हैं आप,
समय को,
या समय आपको बदलता है?
बात गहरी है,
और टाईमपास भी,
है आपके पास?
टाईम?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें