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मैं टुकड़ा भारत!

मैं भारत हूं,  मैं भी, टुकड़े टुकड़े, रोज टूटता, बिखरता हूं, अपनी नजरों में गिरता हूं, कभी रोहित के गले का फंदा, कभी कठुआ का दरिंदा, कभी तबरेज़ की लाश हूं, कभी बदायूं का काश हूं, मीलों चलता, मैं ख़ामोश हूं, और मैं भी, शब्दों की धार हूं, पूरा ही हथियार हूं, फिर भी बेकार हूं, पूरा का पूरा एक टुकड़ा मैं भी, भारत, टूटा हुआ!

मैं भारत!

 मैं भारत हूं... टुकड़े टुकड़े, टूटता, बिखरता, बिलखता, आज-कल  अपनी पहचान खो, खोजता हूं, नफ़रत और दरिंदगी में, हिंदुत्व की गंदगी में, अयोध्या में घायल हूं, हरिद्वार में कातिल, किसानों की लाश हूं, भीमा-कोरेगांव का झूठ हूं, आर. एस. एस. की साजिश हूं, भीड़ का पागलपन भी में ही, मैं ही पड़ा लिखा वहशी हूं, मैं ही धर्म का तैशी हूं! सभ्यता की ऐसी तैसी हूं! दिल के, दिमाग के, सोच के, हमदिली के टुकड़े टुकड़े कर के सब एक हैं, कोई पहचान नहीं किसी की सब शामिल हैं, कोई जान कर,  कोई चुप मानकर, कोई मजबूर जानकर, गुस्से में, नफ़रत से, गले पर तलवार की धार, सर पर राम सवार, कराते जयजयकार, भगवान को प्यारे होते, कोई जी के, कोई मारे हुए, अपने अपने टुकड़ों में, सब एक ही भारत हैं, पर क्या एक हैं ?

टुकड़े टुकड़े भारत!

मैं टुकड़े टुकड़े हूं, मैं भारत हूं, किसी की आदत, कोई बगावत, किसी की शिकायत, किसी की नज़ाकत किसी को जमीन हूं, किसी की जानशीन, किसी को मोहब्बत हूं, किसी की हुज्जत हूं, दिन रात, देर-सबेर, मैं एक नहीं हूं, कभी था ही नहीं!

अखूंड भारत!

 हिंदू धर्म करो, थोड़ी शर्म करो, थोड़ी और, नहीं, इतनी काफी नहीं! कितनी भी काफी नहीं! और अगर गर्व है तो, उठो, नाम पूछो  राम पूछो! और अगर शक है, तो गर्व करो, पर्व करो, उसके सर को धड़ के दूसरी तरफ करो, न बांस रहे न बासुंरी, बस रेप, त्रिशूल, छुरी! फिर बस बचेंगे हिंदू, देश में, दिमाग में, सोच में, समाज में, जगह कम ही पड़ेगी, तंग सोच को, लगनी भी कितनी है, कातिलों का झुंड, भारत अखुंड!

देख - ए लुक!

इंसान देख बहुत सारा मकान देख, जंगल बन गए दुकान देख, सीढियां कहाँ तक ले जाएगी? बना और, और थोड़ी, और देख, जंगल घरों के देख, हर तरह के,  हर रंग में ढंग में बेढंग में, कोई छोटे, कोई बड़े कुछ शोर करते  आंखों में, देख देख, कुछ चुपचाप, विनम्र, कुछ ताड़ की तरह, कुछ बौने सबके सामने, उम्मीद देख, अरमान देख, अना ओ अभिमान देख, शान देख, जीजान लगा दी, जीवन की कमाई देख? देख क्यों? किसलिए? इस सब की जरूरत देख, जरूरत की व्यथा देख, देख, सोच अन्यथा देख, छूटा भरोसा देख, झूठा दिलासा देख, दिल बहलाने को , ग़ालिब ये घर देख! देख इंसान बस, इंसानियत मत देख! डर देख,  अगर देख, मगर देख, बाजार का कहर देख, बिकने को तैयार, बेचने को तैयार, कौन है ख़रीददार देख? बादल देख, बारिश देख, कुदरत की गुजारिश देख, क़ायनात की नवाज़िश, देख सकता है तो देख, शहर बना कर,  बढ़े बड़े घर बना,  कहाँ पहुंच रहे हैं देख? इतनी तरक्की की है, चाँद वाली, मार्स वाली, गति देख, गत देख? जहां जा रहे है उस कल की सूरत देख? अभी भी वही लड़ाई है, अभी भी जीतना है? वही पुराना डर, कोई न बैठे हमारे सर? देख देख देख, मान सके तो मान मूरख, अपने को कमजोर मान, हाथ जोड़, सर झुका,

नफ़रत से प्यार!

चलो थोड़ी और नफ़रत करते हैं, खून में अपने ज़रा ज़हर भरते हैं, ज़िंदगी में सफल होने का ये प्रधान मंत्र है! शाह और मात के खेल में हिंसा शाषन तंत्र हैं! नफ़रत की गोदी में हिंसा पलती है, समय आने पर ज़हर उगलती है! नफ़रत काम आसान करती है, भीड़ को हिंदू मुसलमान करती है, जिसकी सरकार उसकी धौंस, लोकतंत्र बहुमत का खेल है, जो कम है वो फेल है! शाश्वत सत्य यही बात है, जो कम है वो उसका बुरा कर्म है, बुरे की हार है, यही हिंदुत्व व्यवहार है! चलो फिर दिल में नफ़रत जगाओ, हिंसा का अलख जगाओ, अगर अपनी नफ़रत पर तुम्हें शान है, तो यही सच्ची भक्ति की पहचान है! श्रेष्ठ कुल रीत सदा चली आई, नफ़रत ही ने जात चलाई, जो कम है वो अक्षम है! ढोर गंवार शुद्र पशु तन है! तिरस्कार इनका है जरूरी, बराबरी से रखो दूरी! भारत को हिंदू स्थान करो, धर्म नाम पर पाप करो, पापों का जो घड़ा भरे, धुल जाए सब गंग तरे! निर्भय हो तुम वीर बनो, नफ़रत के तुम तीर बनो! रीढ़ अपनी कर दो अर्पण, बुद्धि अपनी भेंट चढ़ाओ, मार किसी को अमर बन जाओ! रामराज में रम जाओ!

चंद सवाल!

मोइनुल हक़ क्यों भागा? लाठी ले कर क्यों भागा? लाठी में कितनी गोली थी? ऐसी क्या उसकी बोली थी? पुलिस के कितने लोग थे? उनका सीना क्या छप्पन था? उनकी लाठी में क्या कम था? लाठी से पहले क्यों बंदूक चली? फिर उसके बाद क्यों लाठी? क्यों उसका मरना काफ़ी न था? क्या गुनाह हुआ जो माफ़ी न था? फिर कौन लाश पर नाच किया? उसपर किसने विश्वास किया? उस का आखिर क्या मज़हब था? क्या वो कोई अवतार था? क्या कोई दैवीय शक्ति थी? या ये परम भक्ति थी? देखा आपने भी होगा? नफ़रत में कितनी शक्ति थी? क्या मोइनुल कमजोर था? क्या वो बहक गया था? या वो बिल्कुल पागल था? बंदूक से लाठी लड़ने आया,  उसको आखिर क्यों गुस्सा आया? क्या मोइनुल को गुस्से का हक़ था? गरीब मजबूर और अहमक था? क्या वो इंसान बनने के लिए दौड़ा था? क्या सरकार ने जानवर की तरह खदेड़ा था? क्या चुप रहना ठीक होता? जुल्म सहना समझदारी? क्या उसे लोकतंत्र नहीं समझा? क्या उसे न्यायपालिका पर भरोसा न था? क्या ये कोर्ट की अवमानना नहीं है? अगर सरकार नहीं मानते, न्याय नहीं जानते? फिर तो वो भारतीय कहलाने लायक नहीं? फिर क्यों हम उसकी बात करें? इंसान नहीं? भारतीय नहीं? पुरानी ख़बर हुई, अब न

हिंदुत्वतन्त्र लोकभंग!

सच में अब ताकत नहीं है, ताकत में ही सब सच है! बोल रही खामोशी है, चीख़ रही बेहोशी है, जो चुप है वो आवाज़ है, ओ कुछ भी जो अलग अंदाज़ है! भीड़ जो है कानून बन गयी, पुलिस मेजबान बन गयी आम जगह बनी शमशान, धार्मिक लोकतंत्र की शान! अल्हा को अब राम बचाए? वेद पुराणों के दिन आए? अखंड भारत, महाभारत, मुर्दे की छाती पर कूदती, वानर सेना की महारथ!

एक अरसे बाद!

फिर एक सफ़र मिले, सरफिरे निकल पड़े, देखें ऊंट किस करवट पड़े! कुछ पुराने, कुछ नए, नाक मुंह परदे लिए, अलग सच या सच से अलग, देखें क्या रास्ते मिले! एयरपोर्ट लाउंज, हवाई सफर, महामारी क्या फ़र्क क्या असर, भीड़ कम है, पर शायद रीढ़ भी! दो के बीच की दूरी, जरूरी...मजबूरी? कुछ ऐसे बंट गए हैं, छुटे हुए और, छट गए हैं! सच्चाई वर्चुअल हो गयी, रोटी कपड़ा मकान, और जरूरी स्मार्ट फोन, जिनके पैर जमीन नहीं, उनको आसमान भी नहीं? बच्चों की पढ़ाई, जैसे कोई जंग, लड़ाई, कैसी ये तरक्की आई, गहरी और हाशिए की खाई! (18 महीने बाद पहली बार एक लंबे सफर को निकलने पर कुछ ख़्याल)

बैठे हैं, बस!

एक आह लिए बैठे हैं एक चाह लिए बैठे हैं, पहचाने रास्ते हैं फिर भी गुमराह हुए बैठे हैं! दर्द तमाम लिए बैठे हैं, क्या इतमिनान लिए बैठे हैं? अपने दिल के बगीचे को वीरान लिए बैठे हैं! एक मुस्कान लिए बैठे हैं, कैसा ये काम लिए बैठे हैं, कहीं कुछ आसान करेंगे, ये गुमान लिए बैठे हैं! अपना आराम लिए बैठे हैं, नक़ाब पहन लिए बैठे हैं, करम के फल हैं सारे,  मूरख मान लिए बैठे हैं! हाथ बांध लिए बैठे हैं, झूठी शान लिए बैठे हैं, कत्ल हो रहे है सच कितने, ओ वो राम लिए बैठे हैं? नया विज्ञान लिए बैठे हैं, चंद्र, मंगलयान लिए बैठे हैं, ऑक्सीजन कम हुई तो क्या? सब बंद कान लिए बैठे हैं!! नफ़रत ठान लिए बैठे हैं, कैसा धर्मज्ञान लिए बैठे हैं मंत्री संत्री सब एक सुर में, तोतों सा ज्ञान लिए बैठे हैं! मुंह में राम लिए बैठे हैं, बगल संविधान लिए बैठे हैं, घड़ियाली आँसू हैं सारे, ओ सब सच मान लिए बैठे हैं?

नवीन

एक आह है जिसे गुमराह करते हैं, यूँ टूटकर जो आप दिलों को तरते हैं!! बेइंतहा ईश्क है आपके सीने में, काहे कमबख़्त कायदा करते हैं!! तमाम खूबियां हैं यारब तुझमें, क्यों बस खामियों का जायज़ा करते हैं? एक ख़लिश का ये लंबा सफर है, कुछ तजुर्बे ताउम्र असर करते हैं!. कितने आसान हैं साथ जब हों, जो सामने वही आईने दिखते हैं! कितने शिकन चल गुज़रे पेशानी से, खामखाँ ही इतनी फिक्र करते हैं! देर आये, दुरुस्त आये, चुस्त आये, यूँ भी अपने यकीन असर करते हैं!

फ़ादर स्टेन स्वामी

कत्ल हो गया और कातिल कोई नहीं, इस मुल्क का हांसिल कोई नहीं! मोहब्बत की बात करता था जो, नफ़रत को नागवार वो गया! खुश होंगे वज़ीर-ए-कत्ल मुल्क के, हस्पताल में गुठली का दाम हो गया! सोच संघी ताकत सरकारी, इंसाफ पे भारी, इस दौर को असली महामारी हो गया! बस एक गुनाह था के रोशनी था वो,  अंधेरे के सौदगरों को खार हो गया!   नाम स्टेन स्वामी, उम्र 84 साल, क्या मलाल, एक सवाल, एक  सवाल,  और  बस सवाल!

ऑक्सीजन!

 .......(फूलती साँसे)  ........हाँफते हाँफते एम्बुलेंस....?  रिक्शा, ठेला....जो मिल जाए सो! अस्पताल इंतज़ार, लंबी लाइन कागजात ऑक्सीजन ऑक्सिजन ऑक्सीजन ........ (खामोशी) .........(कोई जवाब नहीं) ..........(अबकी बार, इंतज़ार) ऑक्सीजन ऑक्सिजन ऑक्सीजन सरकार कहाँ है?  ओह! चुनाव रैली!! , अरे "A" को ऑक्सीजन चाहिए (ट्विटर पर x) अच्छा में पूछता हूँ, (ट्विटर पर Y) Y (व्हाट्सअप ग्रुप में)  अरे! "A" को ऑक्सीजन चाहिए XYZ,  पूछो, बताओ, पता करो, (व्हाट्सएप, टिवटर, फेसबुक, इंस्टा) हां मिला! उसको बताओ, कनेक्ट कराओ,  वहां पहुंचाओ!! ऑक्सीजन ऑक्सिजन ऑक्सीजन हां मिल गया हां मिल गया हां मिल गया  हां मिल गया हां मिल गया.... 1. अब शायद बच जाए! 2. बच गए! 3. हस्पताल में बिस्तर नहीं है! 4. मिल गया, पर अब देर हो गयी! 5. अब ऑक्सीजन नहीं, क्रियाकर्म करवा दीजिए! ..... अब की बार, अंतिम संस्कार!!

ज़ज़्बा ए इम्कान!

ज़मीन देखिए हमारा आसमान देखिए, हल्की सी चहरे पर मुस्कान देखिए, मुश्किल है! तो क्या आसान देखिए! सफर का सारा इंतज़ाम देखिए! एक हम ही नहीं है हमसफर उनके, जो आप उनके तमाम काम देखिए!! क्यों नहीं हो सकता आसमां में सुराख, इस जज़्बे पर रवैया इम्कान देखिए! कितनों को हांसिल है हमदिली उनकी, दिल का उनके खुला मैदान देखिए!! शोहरत से फिर भी ख़ासा डर है, कोई कह न दे 'अल्हा!' "बड़ा काम" देखिए! *Imkan - possibilities

मरता क्या न करता?

मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, गधे नेता वोटों की घांस चर रहे हैं? मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, सांसे कम पड़ रही हैं, और हस्पताल! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, चुल्लू काफ़ी फिर भी गंगा तर रहे हैं! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, भगवान बचाए, सो वो रास्ता कर रहे हैं! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, फिर भी लाखों सच से मुकर रहे हैं? सरकार निकम्मी है, नाकार और दुष्ट, मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं! इलाज के लिए दर दर भटक रहे हैं! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं!! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, साहेब तस्वीर में फिर भी चमक रहे हैं!! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, भूखे, मजदूर, लाचार, दो मौत मर रहे हैं! देशभक्ति में सवाल न पूछने मजबूर हैं! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं!! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, कोविड मरीज़ दाढ़ी जैसे बड़ रहे हैं! किसकी? दवा और दुआ दोनों ही मुकर रहे हैं! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं!! मरते क्या न करते इसलिए मर रहे हैं, वोट आपके बड़ा कमाल कर रहे हैं?