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जनवरी, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पूरी दुनिया अधूरी कहानी!

मर्द और औरत, एक अधूरी कहानी, एकतरफा, मर्दों की जुबानी! तुम्हारी-हमारी माँ कि......बहन की.... दुनिया नहीं लायक...चाल-चलन की… मर्द और औरत बेगैरत और हैरत! काश सारे के सारे 'ना'मर्द होते, बड़े शरीफ़ औरतों के दुःखदर्द होते! मर्द हुए के फेर में अब मुए बहकाए, बाप, भाई, पति से कैसे प्राण छुटाए, कैसे प्राण छुटाए जान पे बन आई, औरत अपनी मर्ज़ी, तो बने मर्द कसाई! औरत की इज्जत महंगाई, मर्द की इज्जत घटिया, कहीं न बिकाई?? इतना भी क्या मर्द बनना, बेगैरत बेशर्म बनना, औरत सामान, कहें गहना, सजना के लिए क्यों सजना??? मानो न मानो ये खालिस सत्य है औरत, मर्द नाम की बीमारी से ग्रस्त हैं!!

ज़रा हम ज़रा कम!

बहुत चलाली,दुनिया, तूने! चलो आज थोड़े हम हो जाएँ! अपने लिए ही तो है, क्या फ़िक्र जो थोड़े कम हो जाएँ! घूम रहे हैं या खुद को ढूंढ रहे हैं, अपने ही कानों में बहुत गूंज रहे हैं! पास आ गए अपने के दूर हो गए? आईने कुछ ऐसे चकनाचूर हो गए! नज़र में हैं खुद की और खुद नज़र आते हैं, अक्सर हम बड़े खुदगर्ज़ नज़र आते हैं! यूँ अक्सर हम, हम ही होते हैं, कभी ज्यादा तो कभी कम होते हैं! खुद के खारिज़ हैं अक्सर, क्या शिकवा करें ज़माने से! पुछ रहे हैं अब क्या होगा, अपने ही अफ़साने से! अपने ही शौक़ीन न हो जाएँ, आईने कहीं मेरे यकीं न हो जाएँ! लगे है रोज "Like" गिनने में, ड़र हैं कहीं कमी न हो जाये!

नील सलाम!

अफ़सोस तो बहुत है पर क्या होगा, मेरे होने को कोई तो वज़ा होगा? चराग़ नहीं बुझा रौशनी चली गयी, एक दरख़्त के नीचे जमीं चली गयी! वो क्या वज़न है जो पैरों को ज़मी करता है, कुछ खो गया आज बड़ी कमी करता है! आज उम्मीद बहुत उदास हो गयी, अज़नबी सी अपनी ही साँस हो गयी! किसी कोने में ज़िन्दगी के कितना वीराना है, खुद को भी तमाम कोशिश कर मिल न पाये! ....दिल रो दिया...कुछ मैंने भी खो दिया....! काला सच है हम सब ने रोहित को मारा, चला गया वो हम सब को कर के बेचारा!   एक दबी हुई चीख हम क्या समझेंगे, किसी ने हम को सांस लेने से कहाँ रोका! उम्मीदें आसमान होती हैं इंसान की, पर मर्ज़ी चल रही जात के पहलवान की!!

रोहित वेमुला - एक सोच

  मैं भी पूरा इंसान हूँ, आप भी? अगर होंगे तो समझ पाएंगे! बस गिनीतियों में सीमित है पहचान, ये क्या दौर है, ये क्या इंसान?? उम्मीदें खोयी है इरादे अब भी यहाँ हैं, सितारों के आगे और भी कोई ज़हाँ हैं!   ये कैसी अवस्था है, बड़ी बीमार व्यवस्था है! चुपचाप सर झुका रहिये तो आप इंसान हैं, सवाल उठाने वाले दो दिन के मेहमान हैं! ये कैसी मोहब्बत कि पंख नहीं देती, सितारों के आगे जहाँ और भी हैं  क्या आपकी कोई जाति है, या आपको मानवता आती है!? कितनी बीमार सोच है, की कोई पैदाइशी कम है!   एक ख़त, और कड़वे सच, बेबाक कितना, कितना बेबस! कड़वी लगी है तो सच जरूर होगी, उम्मीद है ज़हन में दर्ज़ ज़रूर होगी! (रोहित का खत एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, ये पड़ कर महसूस किया था, पर अब ये सच बन कर दुनिया के अलग अलग कोनों से विरोध प्रदर्शन की तस्वीर बन कर आ रहा है। उस खत और उस में जिन सच्चाइयों कि तरफ़ इशारा किया है उन्हीं से निकल कर ये अभिव्यक्ति बाहर आइ है।)

भारत माँ के बच्चे -2

10साल का रामु कचरा चुनता है, किस एंगल से ये भगवान बनता है! 11 साल की लाजो को 2 साल का पप्पू संभालना है, ज़रा बताइये इनमें से किस के अंदर भगवान् होगा? 12 साल के नरेंदर को आज खाकी निक्कर मिला, अब उसको उम्र भर की नफ़रत सिखाई जायेगी! 13 साल की वसुन्धरा की आज सुहाग रात है, कुछ खेलों में बच्चो कि 'कच्ची' नहीं होती! 14 साल का 'श श, अबे इधर आ' टेबल साफ़ करता है, उसका नाम, चाय पीने वालों की तहज़ीब बन गया है! 15 साल की सीता आज से "A" हो गयी है, भारत माँ के साथ ज़बरजस्ती हो गयी है! 16 साल का शेख तडप रहा है प्लेटफ़ॉम पर, आज उसको 'व्हाट्नर' नहीं मिला सूंघने को! 17  साल की मंजु अब दिल्ली जायेगी, साहेब के बच्चों के बड़े काम आयेगी! 18 का हनुमंता चोरी करते पकड़ा गया, अब उसे ट्रेनिंग के लिये जुवेनाइल भेजा है! (बाल-अधिकार कानून के तहत १८ साल की उम्र तक आप बाल-अधिकार के दायरे में आते हैं। इस कानून को अंतरराष्ट्रिय मान्यता प्राप्त है। अगर आप संविधान मानते हैं तो आप ये भी देख सकते हैं कि भारत माँ के करोड़ों बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, पर हम म

भारत माँ के बच्चे -1

पैदा होते ही सब को माथा पीटते देखा, दुखनी सिर्फ़ नाम है या सच की पहचान 1 साल का अभिमन्यू एक दिन में बड़ा हो गया पिताश्री की बाटली ले कर खड़ा हो गया! 2 साल की राजेश्वरी कैसे जाने वो गुड है या बेड गर्ल, क्यों आप आलू-प्याज़ की तरह बच्चों को तौलते हैं! 3 साल का जितेंदर झाड़-फूँक से साफ़ हो गया किसको सजा मिली और कौन मांफ हो गया?? 4 साल की बसंती को एक रोटी कम मिली, उस भाई के लिए जो उसे कभी बचाएगा!!! 5 साल के असोक का कहीं कुछ पता नहीं चला फुटपाथ पर तिरंगा बेचते बच्चे का नाम पूछा!?? 6 साल की रमणी डरती है जबरजस्ती के हाथों से, बेबी को देवी बना कोई गोद बिठाना चाहता है! 7 साल के मुन्ना को आज उसकी पहचान बताई गई, मास्टर जी डंडा से बोले, "नीची जात" "पढ़ोगे"? 8 साल का पिंटू घंटों होटल में बर्तन घिसता है, गौर से देखिये उसके अंदर भगवन बसता है!! 9साल की मुन्नी घर का झाड़ू-पोंछा करती है, कौन सी देवी है जिसकी आप पूजा करती हैं!

देशशक्ति - खोखली देशभक्ति!

हमे था जिसका इंतज़ार ये वो सहर तो नहीं, गाँव में नहीं रहता मुल्क, शहर में मिलता नहीं!  (हजारों लोग रोज गाँव से पलायन कर रहे हैं, और  शहर का कचरा बीनते हैं) न आज़ादी कि सहर हुई,  न जनतंत्र कि सुबह,  मज़हब, जातपात के मौसम कभी बदलते नहीं! जात-पात, धरम-भरम, अपनी अपनी जेब गरम, सौ चूहे खा बिल्ली बोले, जय भारत, वन्देमातरम (हमारे देश के नेताओं कि कहानी) कितने इरादों को कब्र करतें हैं, इस मुल्क में सब सब्र करते हैं! (मस्जिद टूट जाती है, दंगे करने वाले सम्राट बन जाते हैं, बलात्कारी दुल्हे बन जाते हैं) देशभक्ति अगर ज़ोर मार रही है, तो चंद सवाल आईने से पूछ लीजे? (क्या सारे देशभक्त ईमानदार हैं, नेता, अफ़सर,कारोबारी) जय है, भारत माता की जय है, देशभक्त गुंडों का बड़ा भय है! देशभक्तों की बडी गैंग बनी हैं, जो सावधान नहीं उसको विश्राम है! सच बात कहना अगर भय है, तो क्यों जय जय जय जय है? (देशभक्ति की बात आती है तो हमेशा मार-पीट क्यों होती है?) मस्जिद की छत नहीं संविधान की गत थी! (आपकी राय नहीं, संविधान का पहला पन्ना जानिए) सच से सबका झूठा नाता है, जन गण मन भाग्

गणमंत्र दिवस स्वाहा!

देवी है, माता है, इज़्ज़त है हर 'मर्द' की, फिर भी दवा नहीं कोई इसके दर्द की (बलात्कार जैसे देश की संस्कृति है) कोई देशभक्त गुंडा गाली देगा इसका भय है मज़बूरी में कहते जय जय जय जय है! (सिनेमाघर में डर के मारे देशभक्त बनाये जा रहे हैं) भेड़िये भेड़ बने हैं, तोड़ मस्जिद नफ़रत पालते हैं, मज़हब का सब पर जाल डालते हैं। (आर एस एस) भीड़ में सब खड़े हो गए, खासे चिकने घड़े हो गए, सोच के दड़बे हो गए, 'एक' के टुकड़े हो गए (भक्त जो विविधता का खून कर रहे हैं) बाबरी की छत टूटी, संविधान की इज्जत लूटी, अब सत्ता में हैं, देश कि तो किस्मत फूटी! (आप खुद समझदार हैं) पूरा मुल्क सावधान है, तहज़ीब को विश्राम है जिसने सर उठाया उसको काले रंग का नया ज्ञान है! (विरोध अब हिंसा है, जो हट कर बोले उसको मुँह काला कर घरवापस करते हैं) जन जन क्या मन है? क्यों इतना पिछड़ापन है?? (आपको विकास दिखता है या गांव और स्लम में उसका अवकाश) जय जय जय जय है, क्यों देशभक्ति का नाम भय है? ( क्यों हम इतने डरे हैं कि किसी के सवाल उठाने से आक्रमक हो जाते हैं) भारत माता की जय, रोज़ खबर है, अच्छाई पर

सितारों के आगे जहाँ और भी हैं - रोहित

सांप सुंघ लीजे. . . सांप भी मर गया और लाठी भी टूट गयी, आँखे खुली, खोलो!! समझ आये तो समझिये,  न सांप, सांप था न लाठी मारने वालों की थी, इसे कहते है शातिर, पेश-ए-ख़िदमत है,  हिन्दू समाज की  वर्ण व्यवस्था आपके ख़ातिर,   आप जात बताइये,  ये आपकी औकात, एक तरह का पौराणिक एप है, काम आसान करने वाला, किसका? मूरख सवाल पूछते हो, तभी तुम अछूत हो!  अछूते.... तमाम मिडियोकर,  गली के आवारा कुत्तों की तरह सर पर 24*7 लटकते, जातीय सचों को  खिलौना बनाकर, एक बच्चा, खुद कठपुतली बनने से इंकार करता है, तो रोहित (वेमुला) उदित होता है, रोशनी बनता है, अगर आप को नहीं दिखती तो आप अंधे है, या जात या मानसिकता के पंडे, अवस्थी, तिवारी, श्रीवास्तव, गुप्ता, रेड्डी, नैयर, मेनन.... पंडे,   जो हमेशा अपने झंडों पर खड़े होते है, किसने देखा है कि वो किनकी कब्रों पर गड़े होते हैं, इनकी काबिलियत पर प्रश्न नहीं उठा सकते, बड़े बड़े काम ये करते हैं, इतने बड़े घड़े बनाये हैं, पापों के, के सदियों से नहीं भरते, और जस्ट इन केस कभी कोई  भारी भूल हो जाए, तो गंगा है न, अपना नंगापन दिखने में इनको वैसे भ

सच के दरम्यां!

सच्चाई इश्क़ है, इंतज़ार है, दूर देखिये ज़रा इकरार है! सच्चाई यकीं नहीं है, न जाती जमीं है, कभी मर्ज़ी है किसी क़ि, कभी इत्तफ़ाक़ हसीं है! सच्चाई तस्वीर नहीं है,  न ही ज़ंजीर है, कभी शम्स उफ़क़ पर, कभी दिल में शमशीर है! हर लम्हा एक बयां हैं, हर सुबह एक दास्ताँ, सब कुछ यहीं है, बीच जमीं और आसमाँ!! सच्चाई 'कुछ' नहीं है, और 'कुछ नहीं' भी, कुछ 'हाँ' भी है, बहुत, ओ' कुछ 'नहीं' भी है!! सच्चाई ज़ाहिर है, हर सुबह की तरह,  और हर सुबह अलग होती है,  आप क्यों‌ एक ही बात पर अड़े हैं, हर जिद्द के नीचे मुर्दे गड़े होते हैं!  हर हक़ीकत हरदम सच नहीं होती, हर झूठ हक़ीक़ी न हो यूँ भी नहीं, सब ने अपनी-अपनी गठरी बाँधी है, कहने से साबित कुछ नहीं!

कभीकभार

कभीकभार, अगर आप सजग हो जंगल से गुजरें,   सांस लेते, उन पुरानी कहानियों की तरह,   किस के लिये मुमकिन है झिलमिलाते पत्तों के उपर से बिन आहट गुजर पाए   आप उस जगह पर होंगे जिसका एक ही है काम,   आपको हैरान-परेशान करना ज़रा ज़रा सी मामूली, और दिल-दहलाने वाली गुज़ारिश करके, न जाने कहां से सूझी और अब चारों तरफ़ हाथ फ़ैलाते।   गुज़ारिश ये, कि फ़िलहाल जो भी कर रहे हो उसे रोक दो,  और रोक दो वो बनना, जो तुम बन रहे हो, उस काम में ड़ूबके सवाल, जो एक ज़िंदगी बनाते या बिखेरते हैं,   सवाल जिन्होंने बड़े सब्र से आपका इंतज़ार किया है, सवाल जिनको कोई हक नहीं, कि वो ज़ाया हो जायें! - ड़ेविड व्याईट  (अनुवाद -  David Whyte from Everything is Waiting for You ©2007 Many Rivers Press)

काश हम जंगली होते!!

पतझड़ गए तो सावन आते हैं, इंसान आये तो बर्बादी लाते हैं! तरक्की विनाश का छद्म नाम है, इंसान जंगलो में बड़ा बदनाम है!! पेड़ पौधों जंगल से लड़ता है, इंसान किस खेत की मूली है!? क्या लगता है आसमाँ कहाँ हैं, पैरों तले देखिये क्या निशाँ है? कूड़ा है चारों और, लंबी इमारतें और कटे पेड़, आप को क्या लगता है, हमारी क्या प्रकृति है?? पापों के घड़े भरे नहीं शायद, इस साल भी पानी बरस गया! इस दुनिया में हम चंद रोज़ के मेहमां हैं, कब्ज़ा ऐसा किया है जैसे हम ही मेहरबां हैं!! बैठे हैं जिस पर वही डाल काटते हैं, किस मुँह से इंसान ज्ञान बाँटते हैं?? प्रकृति से हमारा क्या रिश्ता है? या सामान मुफ़्त ओ सस्ता है?  Add caption हमारी क्या प्रकृति है?  दुनिया कि क्या आकृति है? इंसान के बनने में  कोई मैन्युफेक्चरिंग डिफेक्ट है, पालतू जानवर, बालकनी गार्डन शायद साइड इफेक्ट हैं!