मर्द और औरत, एक अधूरी कहानी, एकतरफा, मर्दों की जुबानी! तुम्हारी-हमारी माँ कि......बहन की.... दुनिया नहीं लायक...चाल-चलन की… मर्द और औरत बेगैरत और हैरत! काश सारे के सारे 'ना'मर्द होते, बड़े शरीफ़ औरतों के दुःखदर्द होते! मर्द हुए के फेर में अब मुए बहकाए, बाप, भाई, पति से कैसे प्राण छुटाए, कैसे प्राण छुटाए जान पे बन आई, औरत अपनी मर्ज़ी, तो बने मर्द कसाई! औरत की इज्जत महंगाई, मर्द की इज्जत घटिया, कहीं न बिकाई?? इतना भी क्या मर्द बनना, बेगैरत बेशर्म बनना, औरत सामान, कहें गहना, सजना के लिए क्यों सजना??? मानो न मानो ये खालिस सत्य है औरत, मर्द नाम की बीमारी से ग्रस्त हैं!!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।