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भारत माँ के बच्चे -2

10साल का रामु कचरा चुनता है,
किस एंगल से ये भगवान बनता है!

11 साल की लाजो को 2 साल का पप्पू संभालना है,
ज़रा बताइये इनमें से किस के अंदर भगवान् होगा?

12 साल के नरेंदर को आज खाकी निक्कर मिला,
अब उसको उम्र भर की नफ़रत सिखाई जायेगी!

13 साल की वसुन्धरा की आज सुहाग रात है,
कुछ खेलों में बच्चो कि 'कच्ची' नहीं होती!

14 साल का 'श श, अबे इधर आ' टेबल साफ़ करता है,
उसका नाम, चाय पीने वालों की तहज़ीब बन गया है!

15 साल की सीता आज से "A" हो गयी है,
भारत माँ के साथ ज़बरजस्ती हो गयी है!

16 साल का शेख तडप रहा है प्लेटफ़ॉम पर,
आज उसको 'व्हाट्नर' नहीं मिला सूंघने को!


17 साल की मंजु अब दिल्ली जायेगी,
साहेब के बच्चों के बड़े काम आयेगी!

18 का हनुमंता चोरी करते पकड़ा गया,
अब उसे ट्रेनिंग के लिये जुवेनाइल भेजा है!

(बाल-अधिकार कानून के तहत १८ साल की उम्र तक आप बाल-अधिकार के दायरे में आते हैं। इस कानून को अंतरराष्ट्रिय मान्यता प्राप्त है। अगर आप संविधान मानते हैं तो आप ये भी देख सकते हैं कि भारत माँ के करोड़ों बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, पर हम में से कितने इस बात से चिंतित है? )

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

हमदिली की कश्मकश!

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