अफ़सोस तो बहुत है पर क्या होगा,
मेरे होने को कोई तो वज़ा होगा?
चराग़ नहीं बुझा रौशनी चली गयी,
एक दरख़्त के नीचे जमीं चली गयी!
वो क्या वज़न है जो पैरों को ज़मी करता है,
कुछ खो गया आज बड़ी कमी करता है!
आज उम्मीद बहुत उदास हो गयी,
अज़नबी सी अपनी ही साँस हो गयी!
किसी कोने में ज़िन्दगी के कितना वीराना है,
खुद को भी तमाम कोशिश कर मिल न पाये!
....दिल रो दिया...कुछ मैंने भी खो दिया....!
काला सच है हम सब ने रोहित को मारा,
चला गया वो हम सब को कर के बेचारा!
एक दबी हुई चीख हम क्या समझेंगे,
किसी ने हम को सांस लेने से कहाँ रोका!
उम्मीदें आसमान होती हैं इंसान की,
पर मर्ज़ी चल रही जात के पहलवान की!!
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