ख़्वाब में ख़्वाब को सच होते देखा,
दूर थे फिर भी बहुत नज़दीक देखा!
दूर थे फिर भी बहुत नज़दीक देखा!
जब भी देखा उनको बड़ा मसरूफ़ देखा,
कभी खुद को देखें, कभी मेरी तरफ देखा,
जब भी देखा यकीनन गौर से देखा,
कौन जाने आशिक कि गुनहगार देखा,
इस उम्मीद में एक उम्र देखा,
नज़दीक से गुजरे ओ बड़ी दूर थे,
समझ न आये उस अंदाज़ से देखा
आइनों की जुबाँ कब सीखि है, ओ
हम से ही पूछे हैं ऐसा क्या देखा,
उनको देखा तो हरदम हंसी देखा,
खुद को देखा तो हरदम यकीं देखा!
हम देखते ही थे की उसने हमको देखा,
समझ न आये, ‘देखा’ कि देखते देखा!
उनकी नज़र से जब खुद को देखा,
फ़िक्र देखी, फक्र देखा, असर देखा
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