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गणमंत्र दिवस स्वाहा!

देवी है, माता है, इज़्ज़त है हर 'मर्द' की,
फिर भी दवा नहीं कोई इसके दर्द की
(बलात्कार जैसे देश की संस्कृति है)

कोई देशभक्त गुंडा गाली देगा इसका भय है
मज़बूरी में कहते जय जय जय जय है!
(सिनेमाघर में डर के मारे देशभक्त बनाये जा रहे हैं)

भेड़िये भेड़ बने हैं,
तोड़ मस्जिद नफ़रत पालते हैं,
मज़हब का सब पर
जाल डालते हैं।
(आर एस एस)

भीड़ में सब खड़े हो गए,
खासे चिकने घड़े हो गए,
सोच के दड़बे हो गए,
'एक' के टुकड़े हो गए
(भक्त जो विविधता का खून कर रहे हैं)

बाबरी की छत टूटी,
संविधान की इज्जत लूटी,
अब सत्ता में हैं,
देश कि तो किस्मत फूटी!
(आप खुद समझदार हैं)

पूरा मुल्क सावधान है,
तहज़ीब को विश्राम है
जिसने सर उठाया उसको
काले रंग का नया ज्ञान है!
(विरोध अब हिंसा है, जो हट कर बोले उसको मुँह काला कर घरवापस करते हैं)

जन जन क्या मन है?
क्यों इतना पिछड़ापन है??
(आपको विकास दिखता है या गांव और स्लम में उसका अवकाश)

जय जय जय जय है, क्यों
देशभक्ति का नाम भय है?
(क्यों हम इतने डरे हैं कि किसी के सवाल उठाने से आक्रमक हो जाते हैं)

भारत माता की जय,
रोज़ खबर है,
अच्छाई पर बुराई की विजय!
(अखलाक का खून, रोहित की जातिवादी हत्या....आदि इत्यादि)

मासूम एक सुबह कचरे में खाना ढूंढने आता,
सावधान में खड़ा निरीह भारत भाग्य विधाता!
(क्यों रोज लाखों बच्चों को सावधान होने की जगह संजीदा नहीं बनाते)


दहेज़ में जलती है,
गर्भ बिलखती है,Y
कहिये भारत माता कि
कहाँ चलती है?
(सवाल है आपसे)

पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्रविड़ उतकल बंगा,
जात का गरीब घूम रहा हर जगह भूखा नंगा!
(क्यों 80फीसदी गरीब दलित आदिवासी मुसलमान है?)

राम राम बस सब कहें, काम कहे न कोई,
राम राम को काम सोचें अंधी जनता सोई!
(धर्म घर में करिये, मंदिर में धंधे होते हैं, और नेता आपकी भक्ति पर रोटी सेंकते हैं)

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!