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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नज़दीकियाँ!

नज़दीकियाँ आज़ कल थोड़ी दुर हैं रहती , कुछ आदतें जो इन दिनॊं मज़बूर हैं रहती , अधुरे एहसासॊं के लम्हे इकट्ठे होते हैं बैचेनियाँ ये कुछ रोज़ मसरूफ़ हैं रहती , उनके पास जाने के तमाम रस्ते हैं , ख्वाबॊं में पर कहाँ असल बात है रहती सीधी बात होती नहीं सो कहे देते हैं , कह दिये फ़िर सीधी बात नहीं रहती फ़ांसले नापने से युँ कम नहीं होते , युँ ही अपनी आँखे नम नहीं रहतीं!