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एक अरसे बाद!

फिर एक सफ़र मिले, सरफिरे निकल पड़े, देखें ऊंट किस करवट पड़े! कुछ पुराने, कुछ नए, नाक मुंह परदे लिए, अलग सच या सच से अलग, देखें क्या रास्ते मिले! एयरपोर्ट लाउंज, हवाई सफर, महामारी क्या फ़र्क क्या असर, भीड़ कम है, पर शायद रीढ़ भी! दो के बीच की दूरी, जरूरी...मजबूरी? कुछ ऐसे बंट गए हैं, छुटे हुए और, छट गए हैं! सच्चाई वर्चुअल हो गयी, रोटी कपड़ा मकान, और जरूरी स्मार्ट फोन, जिनके पैर जमीन नहीं, उनको आसमान भी नहीं? बच्चों की पढ़ाई, जैसे कोई जंग, लड़ाई, कैसी ये तरक्की आई, गहरी और हाशिए की खाई! (18 महीने बाद पहली बार एक लंबे सफर को निकलने पर कुछ ख़्याल)

#निसर्ग से मुलाकात

आज सुबह की बात हुई, #निसर्ग से मुलाकात हुई, कमाल है,  'विनाश काले, प्रिविलेज भुना ले' साइक्लोन गया, हमको क्या मिला? कुछ टूटे पत्ते छोटी डाली, फूलों की लाली चादर बना ली! बरसात की टिपिर टुपुर गमलों में पानी, एक और मेहनत बचा ली, खूबसूरती! देखने वाले कि आंख हैं, सकारात्मक रवैया, हरियाली खुशहाली, गर्मी ख़त्म, ऐ.सी. बिजली खर्च कम आधे भरे ग्लास में कितना दम! गुड मॉर्निंग वॉक, अख़बार की ख़बर नुकसान इधर उधर किसी की छत उड़ गई, कहीं दीवार सर पड़ गई, बह गया सामान, रह गया पिघला मकान इधर हमारी पकौड़ी तल गई, मौसम हसीन था,  चाय और चल गई!

जितनी लंबी चादर!

आज खाने में आम्रखण्ड रोटी हुई, बेशरम सेहत थोड़ी और मोटी हुई! अंगड़ाई ली और सोचा, किसी की मदद की जाए, धूप से बिटामिन डी ली जाए, पेट भरा हो तो दया अच्छी आती है, भूखे को दिया तो दुआ सच्ची आती है! मजबूर मांगता भी ऐसे जैसे हम भगवान हैं, कानों में मिसरी डाले इतना जो सम्मान है! घर बंगला गाड़ी, सूट साड़ी, इसमें दो चार सौ हज़ार से अपनी ज़ेब को क्या फर्क, चलिए इसी बहाने करें स्वर्ग! वैसे भी हम काफी शरीफ़ हैं अच्छे इंसान, पढ़े लिखे मेहनती, जैसे हमारे बाप और उनके बाप! अब जो बेचारे हैं वो तो बेचारे हैं, अशिक्षा के मारे हैं, इनका क्या करें सदियों से ये गरीब हैं, पहले गाँव के गरीब अब शहर के फ़क़ीर हैं, समाज में ये तो होता है, जब हमारे दादा गांव में मुखिया थे, इनके परदादा उनके सेवक दुखिया थे! बड़े दयालु थे वो, इनके पूरे परिवार को पाला! अब ये लोग शहर आ गए चकाचौंध देखकर, सोचते नहीं हैं ये लोग पैसे के पीछे भागते हैं, पर गरीब की किस्मत देखिए! कौन समझाए, मजदूरी कर के क्या तीर मारेंगे, चलिए, कोई बात नहीं दान धर्म हमार...

बेला चाओ, गो कोरोना गो!!

उम्र भर का आराम कैसे भुला दें? भरपेट बचपन ओ जवानी का सुकून कैसे गँवा दें? वो गद्दे, वो रजाई, मुँह ढक चददर, कूलर की हवाई, वो चारदिवारी, वो छत, वो क्यारी  वो अदब सरकारी, बाप जिला अधिकारी ऊपर की जात हमारी, धर्म राम सवारी, नास्तिक बीमारी, हमारा कौन बिगाड़े? सब चीज़ जुगाड़ है, 6 तरह कि दाल, चावल सफेद और लाल, सब्ज़ी, फल, घी, दूध तेल, वजन घटाने में अब भी फेल  मेहनत सुबह की दौड़ है,  आरामतलबी,  नैटफ्लिक्स, पैसा डकैती (मनी हाइस्त) में नए मोड़ हैं!! बेला चाओ चाओ चाओ सड़कों पर आओ, आवाज़ उठाओ, आओ साथ, आओ आओ , साथ आओ वो कौन हैं (बांद्रा टर्मिनस पर)  जो शोर करते हैं, काम नहीं, बस फल भरते हैं, आवाज़ बहुत है, तोड़ने की नहीं, अफ़सोस, ये टूटने की है! रिश्ते, उम्मीद से, हालात से इतना दबाया है हमने इन्हें ये बस जीते हैं, किसी तरह, टुटे हुए, और उन्हीं टुकड़ों को  बचाने में लगे हैं, हक़ कहाँ है कोई, सब घर जाने चले हैं! बेचारगी की जमीन में ख़ुद को दफ़नाने! आप हम सब जानते हैं, हमदिली भी है, मदद कोई यहां से चली भी है, दुःख, गुस्सा...

मैं प्रिविलेज!

  मैं धर्म और जात हूँ, सरकारी हालात हूँ, मेहनत का मज़ाक हूँ, मक्खन मलाई औकात हूँ! मुझे क्या फर्क पड़ेगा, तबरेज़ की रामहत्या से पायल के जातमत्या से मैं मिडिल क्लास हूँ!! मैं शहर हूँ, अपार्टमेंट घर हूँ, आरओ से तर हूँ, बस्ती से बेख़बर हूँ! स्लमबाई काम करती है, माफ़िया टैंकर पानी भरती है, मैं क्यों अपना हाथ लगाऊं, कचरा गीला सूखा बनाऊं? बस ट्रेन में ए.सी. हूँ, बाज़ार में निवेशी हूँ, मर्ज़ी जो परिवेशी हूँ, क्रेडिट कार्ड का ऐशी हूँ! मर्द मर्ज़ी मूत्र हूँ, पितृसत्ता पुर्त हूँ बाप, भाई, पति ताकत का सूत्र हूँ! जात में "नीच" नहीं, औकात में बीच हूँ, मर्द बीज हूँ त्योहार तीज हूँ! मैं हिंदी भाषी हूँ, मतलब खासमख़ासी हूँ, बहुमत की बदमाशी हूँ, जन्मसिद्ध देशवासी हूँ!