सब साथ के खेल हैं, जाने-अंजाने चाहे– अनचाहे, गाहे–ब– गाहे सवाल ये है, कि आप कैसे खेल रहे हैं? दुनिया की चाल चल, फेल रहे हैं? . या, अपनी मर्जी से मेल रहे हैं? आप काफ़ी हैं या कम? आइने क्या बोल रहे हैं? तराजू किसका है और, किस हाथों तौल रहे हैं? सुना होगा, दुनिया एक होड़ है, चूहे वाली दौड़ है, लगे रहो, एक दो एक, एक दो एक... सवाल ये है कि चाल किसकी है ? आप चुन रहे हैं मोड़, या रस्ते आपको मोड़ रहे है? आप खेल रहे हैं, या खेल किसी और का, आप झेल रहे हैं? आप कैसे खेल खेल रहे हैं?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।