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चंद सवाल!

मोइनुल हक़ क्यों भागा? लाठी ले कर क्यों भागा? लाठी में कितनी गोली थी? ऐसी क्या उसकी बोली थी? पुलिस के कितने लोग थे? उनका सीना क्या छप्पन था? उनकी लाठी में क्या कम था? लाठी से पहले क्यों बंदूक चली? फिर उसके बाद क्यों लाठी? क्यों उसका मरना काफ़ी न था? क्या गुनाह हुआ जो माफ़ी न था? फिर कौन लाश पर नाच किया? उसपर किसने विश्वास किया? उस का आखिर क्या मज़हब था? क्या वो कोई अवतार था? क्या कोई दैवीय शक्ति थी? या ये परम भक्ति थी? देखा आपने भी होगा? नफ़रत में कितनी शक्ति थी? क्या मोइनुल कमजोर था? क्या वो बहक गया था? या वो बिल्कुल पागल था? बंदूक से लाठी लड़ने आया,  उसको आखिर क्यों गुस्सा आया? क्या मोइनुल को गुस्से का हक़ था? गरीब मजबूर और अहमक था? क्या वो इंसान बनने के लिए दौड़ा था? क्या सरकार ने जानवर की तरह खदेड़ा था? क्या चुप रहना ठीक होता? जुल्म सहना समझदारी? क्या उसे लोकतंत्र नहीं समझा? क्या उसे न्यायपालिका पर भरोसा न था? क्या ये कोर्ट की अवमानना नहीं है? अगर सरकार नहीं मानते, न्याय नहीं जानते? फिर तो वो भारतीय कहलाने लायक नहीं? फिर क्यों हम उसकी बात करें? इंसान नहीं? भारतीय नहीं? पुरानी ख़बर हुई, ...

रामराज्य सरकार!

बड़े फ़ायदे के नफ़रत के कारोबार हैं, सुना है आज़कल वो सरकार हैं! राम के नाम की सरकार हो गई, संविधान की बात हे'हराम हो गई! धर्म गिरा है या निचले कर्म हो गए हैं? इस दौर में ख़ासे बेशरम हो गए हैं अच्छे खासे आजकल राम हो गए, धर्म के धंदे आजकल तमाम हो गए! हो कोई धर्म राम नाम सत्य करते हैं, धार्मिक गुंडे कहाँ किसी से डरते हैं! क़ैद अब सत्ता का हथियार है, ये नहीं लोकतंत्र की सरकार है! सत्ता जब किसी को गुनहगार करती है, रोशनी की आड़ में अंधकार करती है! बंदूक आतंक है बंदूकधारी आतंकवादी,  वर्दी को सौ खून माफ़, ये कैसी तरफ़दारी?

हम सरकार!

टिकटोक पर बैन है! व्हाट्सएप से चैन है? पेटीएम फ़िर कैसा है? पीएम केयर में पैसा है? हाथ धोए पीछे पड़े खासे चिकने घड़े, खोखले भाषण सब, क्या कीजिएगा अब? मुफ़्त में राशन देंगे,                                                                                                                  योगा के आसन देंगे, झुठ आश्वासन देंगे, सवाल न होने देंगे! देश की सरकार है बात ये बेकार है, इंतज़ार करते मदद का, लाखों लाचार हैं! बात बढ-चढ कर बोलना, बीमारी मज़हब से तोल ना नफ़रत को भक्ति बोलना सत्ता के खेल हैं! सरपरस्त लकीर के फ़क़ीर हैं, कहाँ किसी के ज़मीर हैं, खून चूस मज़लूम का कामयाब सब अमीर हैं! ये कैसे हालात हैं,              ...

बेकार सरकार

(नागरिकता कानून, दिल्ली चुनाव और दंगे) नफ़रत के व्यवहार, अब सरकारी हथियार हैं, गद्दी पर बैठ मज़े लूटें, अब ऐसे जिम्मेदार हैं! (लॉकडाउन और मजदूूूर, मज़लूूूम) परवा नहीं मज़लूम की, कैसे ये हमदर्द हैं? मुँह फेर कर बैठे है, जो 56 इंच के मर्द हैं! जो सामने है वो झूठ है, सच! बस मन की बात है! लूट गई दुनिया लाखों की, ख़बर है, 'सब चंगा सी'!! (ऊपर से ताली, थाली, दिया) दिखावा है, भुलावा है, जो सरकारी दावा है, ताकत का नशा है और चौंधियाता तमाशा है! सरकार सर्वेसर्वा है, सर्वत्र, सरसवार, जिम्मेदारी की बात करी तो, छूमंतर, उड़न छू, ओझल! हज़ारों जंग हैं और लाखों लड़ रहे हैं,  सरकारी रवैये के ज़ख़्म से मर रहे हैं! सब ठीक है, कुछ भी गड़बड़ नहीं, बॉर्डर पर कबड्डी कबड्डी खेल रहे हैं? अपनी टीम के 20 गंवाए? ये किसकी तरफ से खेल रहे हैं? चश्मा बदला है या नीयत बदल गयी है, या हमेशा की तरह जुबान फिसल गई है? हर तरफ पहरे हैं, क्या राज ऐसे गहरे हैं? गुनाह छुपाने वो तानाशाह हुए जाते हैं!

बात खत्म! अब सब ठीक है!!

मंदिर वहीं बनेगा! बात खत्म, अब सब ठीक हो जायेगा। टूटी मस्जिद में राम नाम कब्ज़ा जमाएगा गुम्बज़ चढों को मोक्ष, भाषण बाजों को भारतरत्न, ईंट उठाने वालों को स्वर्ग, और चुप बैठे रामभज हैप्पी गो लकी चैन की नींद सोएंगे आज भी!! संविधान (नदारद) मुबारक हो!! तलाक तलाक तलाक बात खत्म, अब सब ठीक हो जायेगा। जैसे कि पुरा का पूरा मज़हब गंगा नहाएगा शोर ऐसा है जैसे कि आज़ादी आई है? औरतों की, बुर्के वाली, जिनके जांघों के बीच आपने इज्ज़त लुटाई थी, कल भी, आज भी और कल भी, मज़बूरी!! दंगों में करना होता है, बस अब गंगा सफ़ाई है, कानून तोड़! बड़ी हिम्मत आई है बोलो मर्द नली की जय बोलो बोलो बज_ _  _ ली हो भय! ब्लैकमनी, आतंकवाद का खात्मा! बात खत्म, अब सब ठीक हो गया जमीर अमीर हो गया पैसा नीर अकल ठिकाने, चाहे गद्दे नीचे रही या चावल कनस्तर सच मजबूर, सामने आ गया, उसको लाइन लगा मार डाला! मजबूरी गुनाह साबित हुई, कौन थे जिनके घर दावत हुई? और दिन अच्छे? पुलवामा, खून पसीने की कमाई थी? अडानी, अंबानी दिन रात एक एक कम...

सियासत तमाम!

सियासत जुल्म है, हुक्मरान कातिल, शिक़ायत करें, किससे, क्या हांसिल! बड़ी कारोबारी सरकार है, मज़हब इसका व्यापार है। वो सरकार जिसका मज़हबी सरोकार है, सोचा जाए तो मानसिक रूप से बीमार है! सरकार धर्म की ठेकेदार बनी है, छाँट-बांट -काट की नीति चुनी है! आज कल ताज़ा खबर है, नफरत सियासत का घर है! इंसानियत की क्यों सरहदें हैं? हैवानियत क्यों सरकार हुई है?  मौत सरकार हो गयी है, बड़ा कारोबार हो गई है!!  इंसाफ़ कटघरे में खड़ा है, सियासत चिकना घड़ा है! गायगर्दी कीजिए, सरकारी काम है, गुनाहगारों को अब रामनाम है!!