एक सुबह डिकोया, (जगह का नाम है, डिक्शनरी का क्या काम😊) हुआ कुछ नहीं , और फिर भी, रंग सारे, लगे हुए हैं ! खिले हुए, खुले हुए कहाँ से लाते हैं इतना जोश , इतनी उम्मीद? वो भी चारों तरफ नकारा इंसानों से घिरे होकर, काटते, छांटते, बाँटते, कचरा फैलाते? शायद कोई अहम नहीं है, कोई और संभालेगा, ये वहम नहीं है! एक एक बूंद, एक एक पत्ती हर एक फूल, खिला, मुरझाया, गिरा जानता है अपनी ख़ासियत! पूरे भरोसे, कि दुनिया में उसकी जगह है, यही उसकी वजह है! गुरुर किस बात का, किसी की किसी पर विजय नहीं है! (डिकोया, हैटन, श्रीलंका में है)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।