वतनपरस्ती जो है वो कौमी हस्ती भी है, मेरी पूजा तम्हारी अज़ान बनी है!! नफ़रत क़रीब आई तो मोहब्बत बन गई, अंजान खुद से जो अब पहचान बनी है! हक़ की बात अब जो जुबान बनी है अब मुल्क की तस्वीर जवान बनी है! आबाद हो गई हरसु आज़ादी की बात, भीड़ मेरी गली की अवाम बनी है! साज़िश थी पूरी डुबाने की इसको, चीख़ निकली ओ संविधान बनी है!! फ़न चमक उठे हुक़ूमत की तलवार पे, ज़िंदाबाद की बात जो इंकलाब बनी है!! दूर है कश्मीर, कन्याकुमारी से बहुत, इन दिनों ज़रा सी उम्मीद बनी है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।