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प्यार बीमार, चलो जाने दो!

तुम्हारी भी कुछ कमियां हैं, मेरी भी कुछ खामी है, मेरी मार मुझे पहचान न दो अपने प्यार के बीच ,  दो झापड़ न आने दो चलो जाने दो,  मैंनें मारा, मैंनें माना, मेरा प्यार भी, तुमने जाना, मैंनें माना मैं बदलूंगा, मेरी कोशिश जारी है, आज फिर हाथ फिसल गए, अपने प्यार के बीच ,  दो झापड़ न आने दो चलो जाने दो, मैंने धमकी दी, अंजाने में, मारा तुमको, आवेश में,  वो गुस्सा था मेरे भेष में, जानती तो हो अब मान जाओ, चलो साथ अपने मकान आओ अपने प्यार के बीच , दो झापड़ न आने दो चलो जाने दो,  क्यों दूसरे से बात की, (2झापड़) बदन की क्यों नुमाइश की? (स्लीवलैस?) (दो घूंसे) क्यों मेरे सिवा कोई जरूरी है? (दे लात) ये हाथ में क्या ग्लास है? क्यों और कोई प्यास है? क्यों कोई और आस है? मेरा प्यार तुमसे मांगता है, ये दो एक छोटी बात है! क्यों इस पर कोई सवाल है? क्या यही तुम्हारा प्यार है? और शिकायत ये क्यों मार है? अपने प्यार के बीच , दो झापड़ न आने दो चलो जाने दो, सुनो मेरी भी आह को, जो टूटा हूँ, इस चाह को, क्या तुम नहीं मुझे ज...

मेरा प्यार बेशु_मार!

प्यार इतना हद से ज्यादा  की हाथ उठ गया, वो रोई, मैं रोया मसला मिट गया! प्यार इतना हद से ज्यादा उसको मुस्कराते देख किसी और को हाथ उठ गया मैंने फिर खुद को भी मारा मैं ही बेचारा! प्यार इतना हद से ज्यादा वो मेरी है हमेशा रहेगी,  मेरी बात नहीं मानी तो  हाथ उठ गया मेरा प्यार मैं लाचार अब नहीं दोबारा! प्यार इतना हद से ज्यादा दिन-रात, चार पहर प्यार के लिए तुम थक गईं? मुझको नहीं गंवारा, इसलिए हाथ उठ गया, मेरा व्यवहार मेरा प्यार, हर बार लगातार! प्यार इतना हद से ज्यादा तुम ही मेरी सब कुछ मैं भी तुम्हारा दाता, हमारी पसंद एक है, तुमने सवाल पूछ डाला? फिर हाथ उठ गया, मेरी मर्ज़ी, मेरा प्यार, और कुछ भी ख़बरदार! प्यार इतना हद से ज्यादा मेरा सब कुछ तुम्हारा खुशी, दुख, डर, गुस्सा इसमें भी तुम्हारा हिस्सा था गुस्सा उस से, किसी पर, सो हाथ उठ गया मेरा गुस्सा, मेरा प्यार करो स्वीकार! प्यार इतना हद से ज्यादा थप्पड, घुंसा, बेल्ट, ड़ंडा, सुलगती आग,  उस पल जो आए हाथ नहीं तो फिर...

फिर फिर करवा!

कमजोर मरद डरपोक मर्द करवाचौथ आखिर क्यों कर?? औरत भूखी मरद अमर, तंग सोच, बेशर्म बेदर्द! मर्द का डर, औरत किधर? मर्ज़ी किसकी, क्या जोर-जबर! ! लम्बी उम्र की दुआ, औरत एक जुआँ, बिछा रखा है बिसात पर, तो क्या हुआ? लंबी उम्र की भूख है हवस है, परंपरा है कहाँ कोई बहस है? औरत की औसत उम्र मर्द से कम है, मर्द के लिए व्रत रखती है क्या दम है? ये कैसी मरदानगी की करवा (ते) चौथ है, पल्लू में छिपते हैं डर है कहीं मौत है? परंपरा की दादागिरी और समाज की गुंडागर्दी, और ऊपर से ये ताना के जैसी तुम्हारी मर्ज़ी! तरह तरह से औरत की मौत है, उनमें से एक नाम करवाचौथ है! मर्द जंज़ीर है, औरत शरीर है, परंपरा सारी मर्द की शमशीर है! घर में बेटी, बहू, मां, पत्नी, बहन, घर के बाहर, शराफ़त पर बैन? क्या सिर्फ लंबी उम्र चाहिए? या पैर औरत का सर चाहिए?

अरे!बाबा और 40 रेप!

एक समय की बात है, एक देश में रेप रहता था, कभी कभी, दबे पाँव, चुपके से, अंधेरे में, मौका ताड़ कर वो हो जाया करता था, उसको लोगों ने अलग अलग नाम दिए, कभी चीर हरण कहा, कभी गुरु का प्रसाद कभी बनवास, सब को लगा,  चलो कभी कभी हो जाता है, जाने दो! रेप ने भी बड़ी मेहनत की, उसने इज़्ज़त के धंदे में पैसे लगा दिए, बस फिर क्या था, बाज़ार गर्म होने लगा, लड़ाइयों में लोग रेप को मिसाइल बना लिए, रेप को फ़िर समझ आया, ताक़त के खेल में उसका भविष्य है, और वो जान गया कि मर्द सामाजिक विज्ञान का फेल है! बस उसने मर्दानगी के साथ MOU साइन कर लिया जब कभी किसी को कम पड़े, बस रेप से वो और मजबूत मर्द बने! बस फिर क्या था, घर घर में, गाँव शहर में, धर्म जात, अमीर गरीब, हर जगह रेप का बोलबाला हुआ, मरदानगी का ये ख़ास निवाला हुआ। बस में, हस्पताल में, चॉल में मॉल में, जेल में जंगल में, बालिका मंगल में.... रेप सर्वशक्तिमान, सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी, सर्वभूत है, यानी रेप हमारे नए भगवान हैं इनके सामने बच्ची-माता सब 'सामान' हैं, क्षमा कीजिए!! 'समान' हैं चलिए रेप...

करवा...कैसे नहीं करबा?

शान है, अभिमान है, इतिहास गौरव और सम्प्रदाय महान है? औरत जननी भी है, और वही बदनाम भी, सीता, राम से महान है, वरना गले न उतरता पान है, द्रोपदी को पाँच से आंच नहीं, सौ से उसकी जाँच है? मतलब जब तक घर की बात है औरत, गद्दे के उपर की बस एक चादर है, पर घर के बाहर हाथ मत लगाना, गुस्सा है या झूठे ज़ज्बात हैं? जयललिता, हो माया हो, या राबरी, सब पर औरत होने का तंज है गंजे, तोंदू, छप्पनी, व्यसनी, मर्दों का कुछ नहीं, सब को भरोसा है, क्रवाचौथ की दुआ पे नहीं, करवाचौथ की सत्ता पर, कि ये एक निशानी है, दुनिया वही पुरानी है, तरक्की, आज़ादी, बराबरी ये बात सब बेमानी है! आखिर झुक कर पैरों आनी है, "अपनी मर्ज़ी से", करती हैं मर्ज़ी के दर्ज़ी कहते हैं! वोही मर्ज़ी, जो उन्हें जलाती है? मारती फ़िर फ़ुसलाती है? सड़क पर बेचारा करती है? और समाज मे लाचारा! गर्भ में नागवारा करती है? शादी के बाद जिसकी 'न' का वूज़ूद नहीं, उसकी "हां" क्या है? मजबूरी गवाह नहीं है, जीहुज़ूरी करिये चाँद के ज़रिये हर पतिता को पति मुबारक हों!

पूरी दुनिया अधूरी कहानी!

मर्द और औरत, एक अधूरी कहानी, एकतरफा, मर्दों की जुबानी! तुम्हारी-हमारी माँ कि......बहन की.... दुनिया नहीं लायक...चाल-चलन की… मर्द और औरत बेगैरत और हैरत! काश सारे के सारे 'ना'मर्द होते, बड़े शरीफ़ औरतों के दुःखदर्द होते! मर्द हुए के फेर में अब मुए बहकाए, बाप, भाई, पति से कैसे प्राण छुटाए, कैसे प्राण छुटाए जान पे बन आई, औरत अपनी मर्ज़ी, तो बने मर्द कसाई! औरत की इज्जत महंगाई, मर्द की इज्जत घटिया, कहीं न बिकाई?? इतना भी क्या मर्द बनना, बेगैरत बेशर्म बनना, औरत सामान, कहें गहना, सजना के लिए क्यों सजना??? मानो न मानो ये खालिस सत्य है औरत, मर्द नाम की बीमारी से ग्रस्त हैं!!