बच्चे मन के सच्चे, 'बड़े' कान के कच्चे, मज़हब ढोंग दिखावा, भारत भाग विधाता! कहने की बात की बच्चों में भगवान है, सच्चाई ये की आधे-अधूरे इंसान हैं! वो तोड़ते पत्थर धूल से लथपथ कर, आप तालियां बजाइए चाँद की यात्रा पर! बच्चे हमारा भविष्य हैं, कहावत है, लाखों भूखे-नंगे है किसकी ज़हालत है!? कचरे में चुनते हैं धड़कन ज़िंदा बच्चे, मुर्दा बचपन! बच्चे सब को प्यारे हैं, फिर क्यों? अनगिनत बेचारे हैं!? बच्चों के लिए सबको बड़ा प्यार है, इस प्यार के लाखों बड़े गुनहगार हैं! 'अपने ही'बच्चों को सब ज़ख्म देते हैं! फिर भी हम अपनों की कसम लेते हैं? अगर एक भी बच्चा भूखा है, तो देशभक्ति का इरादा झूठा है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।