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सुबह बोली!

आज सुबह फिर बोलती मिली, पूछ रही थी हाल, कर के आसमान, गुलाबी लाल, क्या कमाल, सुबह एक खोई करवट, उसका क्या मलाल, और फिर एक चिड़िया, बनकर, रात, चहचहाती मिली, अंधरों में धुली, खिली, खुली, सबको सुलाते, सहलाते, सपनों में, झुलाते, थकी नहीं, रात, सुबह के साथ, खेलने को तैयार, दोनों के बीच कितना प्यार, दुलार! और आप हम क्यों परेशां हैं?

सच सुबह!

सब खुश हैं, अपनी अपनी जगह पर अपनी अपनी जगह से, फ़िलहाल, इस पल में और फिर सब बदल जायेगा और फिर भी सब खुश हैं, अपनी अपनी जगह पर अपनी अपनी जगह से सूरज बादल आसमान जमीं सारा निसर्ग, सब साथ हैं, अपनी अपनी जगह भी, और उस के साथ बदलते न अटके हैं , न भटके हैं न कोई चिन्ता है, न कोई इंसिक्युरिटी, न खींच-तान, न अपनी जगह का दबदबा, पानी पानी, हवा हवा सब चल रहा है, सब बदल रहा है, बदलने की कोशिश नहीं, क्योंकि बदलना ही ज़िन्दगी है, कोशिश तब जब डर हो, अगर मगर हो, खम्बों में घर हो, और ये गुमाँ कि कुछ मेरा है, "मैं" मालिक, कितनी इंसानों जैसी बात है, आप ही कहिए, इंसान होना कौन बड़ी बात है!??

समय समंदर!

साथ समंदर साथ साथ एकांत साथ दुनिया सारी, जमीं समंदर आसमाँ सूरज साथ सब पर नहीं कोई किसी पर सवार, एक दूसरे को सब, साथ, फिर भी अकेले पहचान से मुक्त, साथ, कभी लहर समंदर, कभी समंदर लहर, कभी चट्टान, मजबूत सीना तान, अगले पल भाव-विहोर समंदर में लीन विहीन, उजागर भीगे, डूबे, निहित, खामोश, खिलखिलाते, सच, हाथ आते, फिसलते, अपनी शर्तों पर मिलते, ओ पिघलते सब यहीं हैं, आकाश और अवकाश आपके हाथ आने को तैयार, गर आप रुकें, बस उतनी देर, की समय समंदर हो, क्या आप को फुर्सत है?