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किसके आसमाँ?

आसमाँ आसान!

कैसे आसमाँ में इतने रंग बनते हैं? पेड़, पंछी, हवा मिल के बुनते हैं!! कमी नहीं किसी को किसी की! अपनी मर्ज़ी से ये साथ चुनते हैं! कुछ नहीं आसमाँ बस एक खालीपन है, है किसी की नज़र क्या कम, क्या गम है!! अपनी पहुँच, अपने आसमाँ, अपनी ज़मीं! सफर मुसलसल कोई तय जगह तो नहीं!! आसमान बात करने तैयार है! क्या आपकी डोर आपके हाथ है? चारों तरफ फैला है फिर भी अकेला है, आसमाँ से कैसे कहें ये दुनिया मेला है? आसमान को अपने सच मालूम हैं, "कुछ नहीं है"! ये ही वज़ह है! आसमान में कुछ कमी नहीं है!! सूरज भी, चांद भी ओ सारा जहान, सब कुछ ही है बस एक आसमान! और ये डर के आसमान गिर जाएगा? जमीं पर आपको कब यकीं आएगा??

सुबह के सच!

आज सुबह की यूँ शुरुवात हुई अकेले थे दोनों खूब बात हुई! यूँ ही सुबह से मुलाक़ात हुई, मुस्करा दिए दोनों ये सौगात हुई! और भी थे इस सुबह के मुसाफिर, अकेले कहाँ कायनात साथ हुई! वो भी अपने पुरे जोश में निकाला खामोश थे दोनों बहुत बात हुई, यूँ आज सुबह की हालात हुई,, एक पल में अजनबी वो रात हुई!! हर एक लम्हे की कई दास्ताँ थीं, बदलते रंगों से ज़िन्दगी आबाद हुई!

बादल अनलिमटेड़!

बादल , पागल , चले ज़मीन आसमान एक करने खाई का फ़रक लगे भरने , बेअक्ल या बेलगाम , सुरज की रोशनी को मुँह चिढाते , इतराते , इठलाते , भरमाते , नरमाते , पल - पल उम्मीदों को अजमाते , खड़े रहो कंचनजंघा अहम के साथ इस भरम में कि उंचाई विजय है , और बस एक छोटा सा टुकड़ा , जिसे न अहम है न वहम खोते - खोते होता हुआ , या फ़िर होते - होते खोता हुआ , आपकी झूठी सच्चाईयों को गह लेता है , दो पल के लिये ही सही , मोक्ष - एक पल का ही एहसास है , क्या आपके पास खालिस विश्वास है ?

प्रकृति पुरुस्कृत!

वो एक खुबसुरत सुबह सुरज़ की रोशनी से चमकती , और उसी से पुरस्कृत , पास ही में वो बगीचा ,  रंगों से सराबोर  सारे रंग  जिंदगी के और सब रंग उतने ही उद्धंड़ और घास इतनी घनघोर हरित कि आँख और दिल दोनो भर आयें और उन के पार पहाड़ आशा की ओस में नहाये , एकदम तैयार ताज़गी से चमकते हुए चलने को तैयार कितऩी मनमोहक सुबह हर चीज़ सुंदरता से सृजित संकरे पुल के उपर बहती धारा के बीच जंगल के गलियारे में पत्ते किरणों से चंचलित हो रहे थे चंचलता जो उनकी परछाई को भी रोशनी दे रही थी वो सब साधारण पेड़ थे , पर अपनी हरियाली और ताज़गी से उऩ्होनें उन सब पेड़ों को पीछे छोड़ दिया था , जो नीले आकाश को चुनौती देने में व्यस्त थे ! (जे.कृष्णमूर्ती की चहलकदमी से निकली अभिव्यक्ति को पकड़ने की कोशिश)‌

नीलिमा

दो अंतहीन बादल और उनके बीच नीले आसमान का कतरा इतनी नीलिमा इतनी स्वछंद कोमल और पिघलती कुछ ही लम्हों में घुल जायेगी जैसे कभी थी ही नहीं! वो नीलिमा फ़िर कभी नज़र नहीं आयेगी क्या तुमने उससे रिश्ता नहीं जोड़ा . . .? (जिद्दू क्रष्नमूर्ती की चहलकदमी और उस दौरान आये विचारॊं का काव्यअनुवाद )

सफ़र के नुस्खे!

मुसाफ़िर रास्ते चुनते हैं मील के पत्थर नहीं गिनते, चलते रहिये युँ ही सफ़र अपने माफ़िक-ए-मन के! फ़िर पहलू से एक करवट उठी है, फ़िर कोई आहट एक लम्हा बनी है, फ़िर कोई नज़दीकी फ़ांसला बनी है  फ़िर एक आह सफ़र हो चली है!  कुछ नहीं बदला है तो क्या अलग है, देखें आज़ शफ़क को क्या फ़लक है? देखें आज़ उफ़क को क्या ललक है? नये लम्हों को ज़ज्ब करने मेरी पलक है! सफ़र लंबा है, दो साँसें आज ली तो लीं, पीछे क्या मुड़ना दो घड़ियां जरा जी तो लीं उठा लो अगला कदम दौर बदलने दो, फ़िर दास्तां बनेगी, आपको फ़ूर्सत मिली न मिली ! दिन के गुम दो-चार पहर, भटके हैं क्युँ शहर शहर डर, विपदा, अंजान कहर, ठोर कहां और कहां ठहर कुछ देर रुके हैं, तो हम मुसाफ़िर कम नहीं होते, ज़ारी सफ़र सदिओं से साहिल के किनारे, खड़े हैं (शफ़क - skyline during sunset; उफ़क़ - horizon; फ़लक - universe, sky)

सफ़र, नज़र, असर, सहर, कहर

एक और सफर नज़र में है, एक और कदम असर में है, निकल पड़े हैं फिर रास्तों पे, एक और सुबह सहर पे है पलटते रास्ते, थके हुए सवाल, ऊंघती उमीदें, दम तोड़ते जज़्बात, बड़ते कदम, ललचाते प्रश्नचिन्ह, नज़र आसमान, ये एहसास असीमित संभावनाओं से कोई अवकाश नहीं, फिर भी कोई प्यास नहीं साहिल होने कि तमाम मुश्किलें हैं, क्या मुमकिन कोई आस नहीं? क्या नया क्या पुराना है करवट लिये दिन रात बैठे हैं लम्हे तैश में ऐठें हैं अपनों से दूर हो कर अपने ही पास बैठे हैं आपकी नजर है, आपकी परख है, आपकी कवायत है, आपका फरक है! किसकी गरज़ है, किसको कसक है, तज़ुर्बा किसका है, किसका सबक है! इंतज़ार पर यकीं  कोने में छुप कर बैठी हैं शामे हंसीं, नज़र के भागने से दिन नहीं बदलते सच बड़े महीन होते हैं, नाज़ुक सारे यकीं होते हैं, मेरे होने ना होने से क्या गर आपके पैर जमीन होते हैं! आईना चेहरा नहीं दिखाता, सच्चाई दिखाता है, दौर ही ऐसा है , सच पर किसको यकीं आये? ख्याल सबके पैर पसारे हैं, आप क्यों बैठे किनारे हैं तजुर्बे आपके भी अल्फाज़ मांगते हैं कौन कहता है आप बेचारे हैं !

काले सच

सुरज की गर्मी से जल कर काले बादल सफ़ेद हो गये, सच के मान्यताओं से मतभेद हो गये हर चीज़ जल कर राख नहीं होती मिट्टी में मिलने से दुनिया खाक नहीं होती सारी शैतानियां लाख नहीं होती लाख कोशिशें दिमाग की, यकीं बिना दिल पर छायी धुँध साफ़ नहीं होती, पेड़ आसमान छू रहे हैं, और पंछी फ़िर भी, लाख कोशिश, दूरियां कम नहीं होती,  अब इसे उड़ान कहें, या  सोच की थकान, आप कहां पहुंचेंगे, कब होंगे, दूरियों के उस ओर, ये इस बात से तय होगा कि  आप अपने रास्तों से चल रहे हैं या अपने रास्तों में पल रहे हैं, तस्वीर आपकी नज़र है, या,  हर अंजाने मोड़ पर आप हाथ मल रहे हैं, प्रक्रिति की दीवारें, कल से,  काल से सीधी खड़ी हैं,  अपने पैरों तले बहती, नदी को छोटा करते,  पर  जब ढहती हैं, तो ऐसे बहती हैं जैसे यही सत्य है, खोना ही होना है, एक अगर आप अब भी खड़े है, क्योंकि घुटनों में बल है, तो सोच लीजिये, क्या ये छल है? जो सच है वो घुटनों के बल है!  (सुरज की आंकाक्षा और बादलों के खुलेपन, विनम्र नदिओं के इरादे और खिसकत...