क्या मैं तैयार हूँ , जाने को , या फ़सा हूँ , अपनी जिंदगी भुनाने को , हाथ आई चीज़ कौन छोड़े , वो भी मुफ़्त की , बहती गंगा में सब हाथ धो रहे हैं , आज़ - कल बड़ी खुशी से खो रहे हैं हालत पतली है , अपने सर न आये , हो कहीं भी पेशी , हो जायेंगे खड़े सर झुकाये! पर वो दिन किस ने देखा है? अभी तो बस इकट्ठे कर लो , दिन पे दिन , साल पे साल , और उपर से ऐंठ कि उम्र बड़ी है , आपको देख कर चली घड़ी है , पर सच की किसको पड़ी है , सब अपनी मंज़िलों के बीमार हैं , क्या मज़ाल कोई कह दे कि जाने को तैयार हैं , सारी मेहनत खुद को बहकाने की , खुदा आपको लंबी उम्र दराज़ करे , जुग - जुग जियो , साल कि दिन हों पचास हज़ार , क्यों नहीं कोई दुआ देता कि आप कि मौत आप को इंतज़ार न कराये , और बोले भी कौन क्योंकि मौत बदनाम है , बेवज़ह , अगर सोचें तो , सच्ची है , ईमानदार है , और सच कहें तो यही है एक जिसको जिंदगी से सच्चा प्यार है , कभी साथ नहीं छोड़ती , मुँह नहीं मोड़ती , खैर जाने दीजिये , बात जिंदगी और मौत की नहीं , हमारी है , मेरी है , ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।