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मोहब्बत!

मोहब्बत क्यों ये मुश्किल काम है? पहलू में उनके सुकूँ, आराम है! क्यों दुनिया में आशिकी बदनाम है? उनकी शिकायत, ये जरूरी काम है! फिक्र है मेरी ये उनका काम है, ये समझ लेना सफर का नाम है! सब शिकायत है मेरी ख़ामोशी से चुप हैं हम और खासे बदनाम हैं! नज़र जब भी नज़रिया बन जाए, समझ लीजे किसी का काम तमाम है! ज़िंदगी जी रही है ख़ूब दोनों को, हम हैं साकी और वो जाम है! मोहब्बत गहरी पहचान है, सुबह मेरी ओ उनकी शाम है!

उंसीयत

बांध लो तो मैं हुं , छोड़ दो तो मेरी उंचाईंयां , किसने समझी जहां में उंसीयत की गहराईयां। रोक लो तो मंजिल , साथ दो तो रास्ता , जिंदगी के सफ़र की हैं बड़ी दुश्वारियां , चल रहे तो सफ़र है, रुके गये मकाम कोई, हाथ में बस हाथ है, क्यों और सामान कोई? धुप जलने को नहीं , न छांव बुझने को , पनपने देती नहीं हमें रिश्तॊं की परछाईंयां। आज़ तुम खफ़ा हो कल हमारी बारी है , आसां नहीं समझना रिश्तॊं की बारीकियां। मेरी खता नहीं , कहते हैं वो , मेरी भी नहीं , ले डूबेगी उंसीयत को अंह की बीमारियां। जमीं - जमीं रहे और हो आसमां बुलंद। उंसीयत एसी जो करे दो जहां बुलंद।। ठहर जाये किसी वज़ह किसी मोड़ पर ये रिश्तॊं की पहचान नहीं। न उड़े पंछी तो आसमान नहीं , बिन उंसीयत के बागवां नहीं।।  इससे अच्छी क्या बात हो,  अपना साथ ही हालात हो!

बिखरे गौहर!

बिखरे गौहर आराम थे फरमाते,  हाथ लगे सुराग, हैं अब नज़र आते   क्यों नापते हो रिश्तों कि लम्बाई क़त्ल तराश होना है, फिर क्यों तलाश हीरे कि तलब बेहतरीन है, तो क्या खाक इबादत पीरे कि मेरे होने में ही इश्क-ए-अज़ीज़ है  फिर क्यों आशुफ़्तगी है कसर ढूँढ कर कहते हो कि कोई कोताही खली है हमारा साथ मुकम्मल है, क्यों ये बात कल है जिन्दगी क्या सिर्फ लम्हों कि फसल है? हमारे साथ कि बेहतर ये आसानी है दुनिया गयी भाड़ में, आपकी हम से सारी परेशानी है  सोच लो हर पल एक लम्हा हो जायेगा गुजरा आँखों से मंजर हो जाएगा, जी लो आज को हर घडी, बीता, कौन जाने कब पिंजर हो जाएगा होंसला साथ हो भी तो, बिना यकीं क्या होगा,  नजर आसमान में सही  पैर जमीं पर होगा देख लो   बिखरे हुए रंग, तस्वीर फिर भी एक है उम्मीद आसमानों कि, इरादे पर भी नेक हैं नजरें चुरा कर नज़र आते हो ... अमां! क्यों अपने हुस्न से कतराते हो कातिल हो या खुद का शिकार,  नजरें बयां कर रही हैं कई अल्फाज़..  ये अंदाज़ है...