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अब क्या?

दर्द है बहुत पर अपना ही तो है, टूट गया है वो पर सपना ही तो है! कड़वाहट फैल गयी है हर ओर, लाज़मी उसका चखना ही तो है? अपना नही पराया लगता है अब, क्या गिला मुल्क अपना ही तो है? हाथ खड़े कर दें और बैठ जाएं? उम्मीद को कहीं रखना भी तो है? नफरत से भी इतनी मोहब्बत, कैसे? क्यों दिल किसी का दुखना भी तो है? और ये दौर भी गुज़र जाएगा एक दिन, अभी फ़ूल गुलशन के महकना भी तो है! समझ नहीं पाए हक़ीकत, ये इल्जाम, फंदा तैयार है बस लटकना ही तो है! उम्मीद के बनजारे हैं और कहाँ-कहाँ जाएंगे? उनकी गली एक दिन फिर भटकना भी तो है?

नाम - लड़की

नाम - लड़की जगह - कश्मीर  उम्र - कोई ठिकाना नहीं देश - घर के बाहर खड़े AK-47 (या वैसा ही कुछ) आर्मी वालों से पूछ कर बताउं?  जन्म दिवस - रोज़! अगर जिंदा बच गए तो तालीम - झुठी, गुमराह करने वाली (स्कूल की)      -----  144, कर्फ्यू, तलाशी, ताकत, बेइज्जती,  शौक - इज्ज़त, आज़ादी, आईने से आँख मिलाना घर में कौन कौन है - है या था? मौज़ूद या मिसिंग?  दोस्त - ज़िंदा या मुर्दा? स्कूल में या अस्पताल में? कोई सपना - 'दिन का?' - रात में चैन की नींद                    'रात का?' - "कश्मीर" आप किस बात से मुतासिर हैं, प्रेरित हैं?  -  कश्मीरियत पाँच साल बाद आप अपने आप को  ? पाँच साल? पहले दे दीजिए, पाँच साल? एक दिन ही दे दीजिए?

कल आज और कल!

आज को आने की जल्दी पड़ी थी ताक लगाये थी, जिद्द पर अड़ी थी सुबह सुबह अब पांव पसारे पड़ी है, हम को जगा दिया, खुद सोयी पड़ी है! आज को कल होने की जल्दी पड़ी थी कतार लगाये लम्हॊं की भीड़ खड़ी थी मुंह छूपा के कितने लम्हे युँ ही गुजर गये जिद्द में खड़े कुछ आने से ही मुकर गये! कल को आस्तीन से झाड़ बैठे हैं, किसको खबर,कहां इसमें सांप बैठे हैं देखते हैं 'आज' क्या तेवर दिखाता है, हम भी अपनी चादर नाप बैठे हैं! आज को आस्तीन से झाड़ के बैठे हैं, फ़िक्र कहां कि जाम आये, इल्जाम आये आईना साथ में और ताड़ लगाये बैठे है मुमकिन है, कल कातिलॊं में नाम आये! आज़ को आस्तीन से झाड़ के बैठे हैं, कल के पन्ने अब पलटते हैं, कब कहां कौन सी बत्ती चमके उम्मीद के झाड़ से लटकते हैं! आज़ को आस्तीन से झाड़ के बैठे हैं, दिन भर गला फ़ाड़ के बैठे हैं टिप-टिप बारिश की आड़ में बैठे हैं मत कहना,बड़े लाड़ से बैठे हैं! आज को कल होने की जल्दी पड़ी थी कतार लगाये लम्हॊं की भीड़ खड़ी थी मुंह छूपा के कितने लम्हे युँ ही गुजर गये जिद्द में खड़े कुछ आने से ही मुकर गये!