आपको पता नहीं!...पर आज भी सुबह हुई थी भोर अभी भरी नहीं थी और तारे अब भी सजग पेड़ अभी भी सकुचे सिमटे पंछी भी चुप यहाँ तक की रात को रास्ता किये डाल-डाल, पात-पात, उल्लू भी, एक अजनबी सी ख़ामोशी समंदर के गर्जन को चीरती हुई वहीँ, कई फूलों की महक, सड़ते पत्तों और गीली जमीं के साथ डेरा डाली हवा में चारों तरफ पहुँचती हुई, सारी प्रकृति भोर के इंतज़ार में थी ! आने वाला दिन उम्मीद, सयमं और अजीब सा ठहराव शायद इस डर में कि अपनी हलचल में कहीं आने वाला कल न खो जाये न जाने कितने ऐसे दिन शहरों के शोर में गुम हैं. (जिददू कृष्णमूर्ति की सुबह की चहल-कदमी और उस से जुड़े विचारों से अनुरचित)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।