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कितने सच?

क्या सच आजाद होते हैं?  अकेले? अपने आप में पूर्ण? आत्मनिर्भर दो सच जब साथ आते हैं तो सामने होते हैं या बगल में इंसान जब सामने आते है तो नागासाकी पहुँच जाते हैं, अगर आप कहते हैं दुनिया सुन्दर है तो आप शायद बन्दर हैं टुकुर टुकुर देखते, पैरों पर खड़ा होना सीख गए पर ध्यान शायद अब भी उस आम में अटका है जिसकी गुठली के दाम नहीं होते दुनिया चीख कर कह रही है "ये आदमी किसी काम का नहीं" पर आप कान नहीं होते! अगर आप रामभरोसे हैं तो याद कीजिये? सीता का हश्र मर्यादा या मर्द आधा आज का सच विकास है! गला तर, पेट भर प्यासे के भूख कि किस को खबर किसके नज़र ऊँचे मकानों में मौत भी दावत है ओर जिनको छत नहीं उनकी ये आदत है अमीर ओर अमीर, गरीब ओर गरीब ये अब एक कहावत है, किवदंती, क्या सोचें उनको जिनकी पहचान है सिर्फ गिनती, ८०% प्रतिशत, २० रूपये रोज, " सच " कहते है बड़ा बलवान पर उसकी तो सुपारी दे दी है, सर उठाओ सामने है पहलवान, और आज कि द्रौपदी के भी वही हाल है साडी जितनी कम, बाज़ार उतना गर्म, पापी पेट का सवाल है ...