ज़मीन हिल गयी, पैरों के नीचे की सच्चाई बदल गयी, कुछ लम्हा सही, रगों की नीयत बदल गयी, कुछ कह रही थी, या सबर टूटा कि बरसों से सह रही थी! जमीन पिघल गयी, ज़ज़्बातों की झड़ी, रह गयी अनकही कोई बात कसर है, या कही नहीं अपनी, बरसों का असर है? हिल गयी, पिघल गयी, आज ज़मीन आसमाँ निगल गई! ये कैसी प्यास थी, या बरसों से दबी आस थी, ओ आज बदहवास थी? ख़ामोशी अच्छी है, सिर्फ़ सुनने को, 'कहने को' खामोश क्यों करिए? जब भी, जो भी, दिल कहता है कहिए! जुड़िए अपनी जमीं से, जज़्बाती रहिए, ज़ज़्बात कहिए!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।