सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

expectation लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चाहिए! चाहिए! चाहिए!

पंसारी की दुकान है उपर आसमान में, हाथ उठे हैं और सबको सामान चाहिए! काम फ़कीरी का ज़रा आसान चाहिए क्यों दुआ माँगें के सुख-सामान चाहिए! क्यों लाउड़स्पीकर भर भजन, इबादत है? नेमत बरस रही है आपको कान चाहिये! लॉटरी वाले का नाम भगवान चाहिए, मन्नत पूरी होना ज़रा आसान चाहिए! क्यों शोर मंदिर-मस्जिद-गिरजे में इतना है, काफ़ी नहीं के सबको इंसान होना चाहिए? बस एक फ़िक्र के दोनों हाथों में लड़्ड़ू हो, भगवान चाहिए या सिर्फ़ भगवान...! चाहिए? हाथ खड़े कर रख्खे हैं मंदिर के भगवान ने, आज़ादी के लिये शायद इंसान चाहिए! सुना, सब कुछ संभव है इंसान चाहे तो,  बस गुंड़े, दलाल, ओ लाठी बंदूक चाहिए!  

प्यारे सवाल!

मुसाफ़िर अपने सफ़र पे निकल जाते हैं ,   काहे पुराना नाम - सामान लिये जाते हैं।। रास्ते जिंदगी के कभी खत्म नहीं होते , जो प्यार करते हैं उऩ्हें जख्म नहीं होते !! सब अपने रस्ते हैं मर्ज़ी के मोड़ गये , आप खामख़ां सोचते हैं छोड़ गये ! टुटे हुए वादों को क्यों संभाल रखते हैं ,  भूल गये शायद के नेक इरादे रखते हैं ! जब तक रास्ता एक है हमसफ़र है , पर अकेले है तो क्या कम सफ़र है ? मोहब्बत एक तरफ़ा रही तो क्यों परेशान है , चार दिन की लाईफ़ है , और सब मेहमान हैं ! मोहब्ब्त के बड़े सीधे - सच्चे कायदे हैं , दुकान खोल लीज़े जो नज़र में फ़ायदे हैं ! वक्त बदला , ईरादे बदले , अब आगे बड़े हैं , एक जगह आप अड़े हैं तो चिकने घड़े हैं , ये फ़रीब - ए - नज़र है या अना का असर है , आप ही वजह हैं और आप ही कसर हैं ! (टुटे दिलों और फ़रेबी मुश्किलों की देवदासिय आदतों की दास्तानों से उपजी)

फ़िक्स ड़िपोज़िट!

जहाँ दिखे कोई छोटा , बड़े बनते हैं , करने को और छोटा मुर्दे गड़े चुनते हैं , जिंदगी बच्चों का कोई खेल नहीं है , हमने देखा है , तजुर्बे का कोई मेल नहीं है , आदर से सर झुकाओ , बेफ़ज़ूल सवालों पर ताला लगाओ , जमीं पर तुम्हारे पैर नहीं हैं , आसमां तुम्हारी ओर नहीं है , . . .खामोश ! मेरा सच कुछ और है , पर मेरे इरादे मासूम है , और मेरी आवाज़ में कहाँ वो जोर है , ज्यादातर बचपन इन बातों में दल जाते हैं , कुछ फ़िर भी इन तंगसोची से परे आते हैं , और फ़िर ये शिकायत कि दुनिया ठीक नही चल रही बच्चे बुज़ुर्गों का मान नही करते , भूल गये बच्चे अब बड़े है , आपकी तमाम कोशिशों के बावजूद , और बड़े मान नहीं करते , अपने हर फ़र्ज़ का दाम करते हैं , नहीं यकीन तो खुद को सुन लो , " कितना त्याग किया तुम्हें बड़ा करने में " " बुखार तो रात रात  ठंड़ी पट्टी लगाई थी " " और कंधे पर धरकर झांकी दिखाई थी " “ और मां ने नौ महीने पेट में रखा था " जैसे बच्चे नहीं कोई बैंक का खाता हैं , अभी जमा किया बाद में सूद आता है! क्या आपका अ...