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पहचान - एक गुलामी

बचपन से सिखाते हैं, मुझे "मैं" बनाते हैं, अलग करके सब से रिश्ते दिखाते हैं, जज़्बात जगाते हैं, प्यार, देखभाल, मदद हरहाल, इज़्ज़त, और फिर इन सब को सही-गलत, अपने-पराये छोटे-बड़े के दायरे में बंद कर नैतिकता बनाते हैं, चेतना बना कर सरहदों के कैदी बनाते हैं, इस तरह आज़ाद हो हम दुनिया में आते हैं!

यही होता आया है!

जो जहां है वो वहीं रहेगा! जो होता आया है वो ही होता रहेगा? कहने को लॉकडाउन है! नया क्या है? पुरानी सामाजिक व्यवस्था है! सदियों से, लाखों को किसने छुआ है? या छूने दिया है? मजदुर रास्ते में अटके हैं, यूँ कहिए रास्ते में भटके हैं, अधर में लटके हैं, न घर ने घट के हैं टूट गये जो अभी तक चटके हैं, रोज कमाते थे, कुछ खाते कुछ गंवाते थे, बस्ती में, कौन वसूली को आते थे, कल के भरोसे आज थे, और कल किसने देखा है? आगे की क्या सोचें आज भी, वही लक्ष्मण रेखा है! बीमार हस्पताल में हैं, घेरों में सवाल के हैं, जात क्या है, ध्रम? झुग्गी वाले!! बाप रे! क्या बदल रहा है? बीमारी नहीं, बीमार को दोष है! बीमार अछूत है, और डॉक्टर, नर्स भी! (करो घर खाली) हमारे दिमाग अब भी वर्तमान भूत है! छूत-अछूत है! ज़ाहिर है लोग छुपाते हैं, चुपचाप खामोशी से कोरोना फैलाते हैं! पकड़े न जाएं, विदेश सफर से, बुखार उतार दवाई खा कर आते हैं! क्रोनोलॉजी समझिए, बुखार - टेस्ट - पॉज़िटिव अछूत - अस्पताल सरकारी गंदे टॉयलेट, लांछन, शर्म, दोषःरोपण अपराधबोध समाज में धब्ब...

जितनी लंबी चादर!

आज खाने में आम्रखण्ड रोटी हुई, बेशरम सेहत थोड़ी और मोटी हुई! अंगड़ाई ली और सोचा, किसी की मदद की जाए, धूप से बिटामिन डी ली जाए, पेट भरा हो तो दया अच्छी आती है, भूखे को दिया तो दुआ सच्ची आती है! मजबूर मांगता भी ऐसे जैसे हम भगवान हैं, कानों में मिसरी डाले इतना जो सम्मान है! घर बंगला गाड़ी, सूट साड़ी, इसमें दो चार सौ हज़ार से अपनी ज़ेब को क्या फर्क, चलिए इसी बहाने करें स्वर्ग! वैसे भी हम काफी शरीफ़ हैं अच्छे इंसान, पढ़े लिखे मेहनती, जैसे हमारे बाप और उनके बाप! अब जो बेचारे हैं वो तो बेचारे हैं, अशिक्षा के मारे हैं, इनका क्या करें सदियों से ये गरीब हैं, पहले गाँव के गरीब अब शहर के फ़क़ीर हैं, समाज में ये तो होता है, जब हमारे दादा गांव में मुखिया थे, इनके परदादा उनके सेवक दुखिया थे! बड़े दयालु थे वो, इनके पूरे परिवार को पाला! अब ये लोग शहर आ गए चकाचौंध देखकर, सोचते नहीं हैं ये लोग पैसे के पीछे भागते हैं, पर गरीब की किस्मत देखिए! कौन समझाए, मजदूरी कर के क्या तीर मारेंगे, चलिए, कोई बात नहीं दान धर्म हमार...

मर्द नज़र!

एक बदन हैं बस, दो स्तन हैं बस, रास्ते पड़े हैं बस आपके भरोसे हैं बस! ज़रा आंख फेर लो ज़रा हाथ फेर लो ज़रा अकेले में घेर लो, ज़रा नोच-खसोट लो! कुछ ज्यादा ही नखरे हैं, कुछ ज्यादा ही मुकरे है, कुछ ज्यादा ही हंसती है, आख़िर क्या इनकी हस्ती है? "न" कहा तो हाँ है, कुछ न कहा तो हाँ है, जो भी कहा वो हाँ है, "न"का हक कहाँ है? बेवज़ह हंसी होगी इसलिए, कपड़े कम है इसलिए, अकेले निकली है इसलिए, ये शोर इतना किसलिए? बहुत पर निकल आए हैं, बहुत कमर मटकाए है, बहुत आगे ये जाए है, कोई तो सबक सिखाए है!! कुछ तो किया होगा? बिन चिंगारी धुआँ होगा? मर्द से कंट्रोल न हुआ होगा? इज़्जत गई अब क्या होगा? घर बिठा के रखिए, अंगूठे नीचे दबा रखिए, पहले अपनी जगह रखिए, चाहे कोई वज़ह रखिए ! ये मर्द नज़र है, यही नज़रिया भी, ज़ोर लगाना है ताकत का, बस यही एक ज़रिया भी (एक नज़दीकी के साथ ट्रेन में जब वो सो रहीं थी एक मर्द ने छेड़खानी की, गलत तरीके से छुआ, अपने शरीर के अंगों को प्रदर्शन किया! ये कोई खास बात नहीं है, आम बात है।पर उसके बाद क्या हुआ अक्सर नहीं होता।...

सचमुच! काफ़ी बड़ा है?

भारत एक बड़ा देश है....निहायत ही, महज़ आकार में फक्त प्रकार में, सबसे छोटा क्या है? हमारा दिल? या हमारी सोच? बड़ी स्पर्धा है दोनों के बीच, परंपराएं कितनी, बताती हैं एक सोच बड़ी नीच! और सोच की क्या बात है, सोच सती है, अबला है, कमाल की बला है, पैदा हो न हो, तय फैसला है! सोच द्रोपदी का चीर है, दोनों ओर मर्दानगी तस्वीर है! सोच ही समझ है, सच है, राम नाम सत्य, सीता अस्त! दिल की तो मत पूछो इसमें आने को, जाती ऊँच, रंग पूछ, लड़की करो कूच... नेकी? पर पहले पूछ? जात, धर्म? कर्म? कहाँ है मर्म? आंखें खोल, किसी भी शहर, दो-चार कदम चलिए, और मिलिए, हासिओं से (मार्जिन), कचरों के ढेर से  तरक्की की दुसरीं ओर, बसाए हुए, सुलभ शौचालय  और दुर्लभ विद्यालय पर कतार लगाए आपके बर्तन, झाडु-पोंछा से, आभारी! उम्र लंबी है, कभी आऐगी बारी, बस मेहनत करते रहो परिश्रम का फल मीठा है, प्लीज़ डोंट माइंड, ज़रा झूठा है!! आपकी शराफ़त  न ही लुटा है!!

करवा चौथ!

दुनिया में औरतें कम हैं, और वो मरती भी जलदी हैं? औरत में ताकत कम होती है, कम उम्र मे लड़कियाँ ज्यादा मरती हैं, फ़िर भी वो ही भूखी प्यासी हैं, लंबी आयू वालों के लिए उपवासी हैं? इससे क्या निष्कर्ष निकालें ? औरत मूरख है? नितांत!निसंदेह! निश्चित्त! और मर्द? कमीना? गैर-जिम्मेदार?  असंवेदनशील? तंग सोच? डरपोक? लालची? और चुँकि औरत मूरख है वो या मान बैठी है कि किस्मत में यही लिखा है? इनसे तो होगा नहीं, मुझे ही कुछ करना होगा! उनकी उम्र लंबी हो या नहीं, मुझे शायद इस नरक से जळी छुट्टी मिले! इल्लत कटे!

करवा...कैसे नहीं करबा?

शान है, अभिमान है, इतिहास गौरव और सम्प्रदाय महान है? औरत जननी भी है, और वही बदनाम भी, सीता, राम से महान है, वरना गले न उतरता पान है, द्रोपदी को पाँच से आंच नहीं, सौ से उसकी जाँच है? मतलब जब तक घर की बात है औरत, गद्दे के उपर की बस एक चादर है, पर घर के बाहर हाथ मत लगाना, गुस्सा है या झूठे ज़ज्बात हैं? जयललिता, हो माया हो, या राबरी, सब पर औरत होने का तंज है गंजे, तोंदू, छप्पनी, व्यसनी, मर्दों का कुछ नहीं, सब को भरोसा है, क्रवाचौथ की दुआ पे नहीं, करवाचौथ की सत्ता पर, कि ये एक निशानी है, दुनिया वही पुरानी है, तरक्की, आज़ादी, बराबरी ये बात सब बेमानी है! आखिर झुक कर पैरों आनी है, "अपनी मर्ज़ी से", करती हैं मर्ज़ी के दर्ज़ी कहते हैं! वोही मर्ज़ी, जो उन्हें जलाती है? मारती फ़िर फ़ुसलाती है? सड़क पर बेचारा करती है? और समाज मे लाचारा! गर्भ में नागवारा करती है? शादी के बाद जिसकी 'न' का वूज़ूद नहीं, उसकी "हां" क्या है? मजबूरी गवाह नहीं है, जीहुज़ूरी करिये चाँद के ज़रिये हर पतिता को पति मुबारक हों!

चट हट फट छपाक - वाराणसी से आवाज़!

शब्दकोश - चट - झापड़; हट - लात; खट- लात, झापड़, मुक्का;  छपाक - एसिड आपके चहरे पर आओ बेटी आओ, तुम्हें भारत सिखाते हैं, चट! लालची मन = लछमन रेखा के पीछे पाँव, अपने कुर्ते हमारे हाथ से दूर रखो राम भी हम रावण भी हम चट! समझ रही हो न? नहीं? चट! तुम ही सीता भी, तुम्हीं शूपर्णखा, क्यों आवाज़ उठाई खामखाँ? चट! तुम्ही 44 %, पत्नी, हर दो मिनिट तुम्हारी छटनी चट! आओ बहन आओ! तुम्हें भारत बताते हैं, छपाक! ये हिम्मत तुम्हारी? बेचारी रहो, बेचारी! छपाक! तुम बोलती हो? शर्म कहाँ गयी? हिम्मत कैसे आ गई? छपाक! अरे, न करती हो? सीता को शूपर्णखा किया? ये लछमन, क्षमा, ये लक्षण ठीक नहीं! छपाक! आओ मां, बहन, बेटी तुम्हें भारत लठियाते हैं, चट, हट, खट, छपाक! वाराणसी, बुरा नसीब! यहाँ लंका भी है और कुल पतित रावण भी चट, हट, खट, छपाक! प्रिये तुमने अपने पापों का घड़ा भरा चट होस्टल के बाहर 6 बजे के बाद चट आवाज़ ऊंची खट शिकायत, शि का य त हट विरोध, मांगे, धरना, राम राम राम चट हट खट छपाक उम्मीद है अब आप औकात में रहेंगी, जात में रहेंगी दाल भात में रहेंगी आँख नीची होगी,...

बुरा मानो कि होली है!

सरकार की लाठी बोलती है,  नौज़वानों से वृंदावन होली खेलती है,  हैदराबाद में सरफ़ुट्टवल करके,  आज़ादी के खून से खेली है, बुरा न मानो होली है! नदी नीयत सब सूखी है,  जमीन प्यासी है, भूखी है,  किस तरह की जिद्द है, फ़िर, "बुरा न मानो होली है?" बुरा न मानो, गोली है,गाली है, घूंसे-लात, गिरेबां में हाथ, होली है, दहेज़ में बोली है, मर्दों की दुनिया में औरत, जलती है, और बड़बोली है! बुरा न मानो, प्रजा बड़ी भोली है, भक्त है, और ख़ाली इसकी झोली है, लगे है सब इसमें इश्तेहारी सपने भरने, कौन देखता है की आज़ादी की होली है? बुरा न मानो चोली है,  चरित्र-ए-मरदुए की होली है,  नीयत से आज़ाद है,  ये किशन की बोली है,  नारायण, नारायण! बुरा न मानो मौसम गर्म है,  आग सी लगी है, बदन में,  ठंड़ा करने का कोई मर्म है,  मर्द को शरीफ़ साबित करना धर्म है!

रिश्ते मैं तो हम आपके.....

रिश्ते ज़ंजीर है किसी को किसी को शमशीर हैं मज़ाक हैं किसी को किसी को पूड़ी खीर हैं किसी को मज़बूर करते हैं किसी को मजदूर किसी को चकनाचूर कोई फलता है,कोई पलता है सही रस्ते चलता है कोई घर से भाग निकलता है कोई इंसाँ से रखता है कोई इंसाँ से बचता है किसी को कुत्ता प्यारा है कोई घोड़े का चारा है कोई फूलों में रमता है कोई उड़ान भरता है बिन रिश्ते इंसान नहीं, जरुरत पर भगवान बनाता है मरे को शमशान बनाता है अपना काम आसान बनाता हैै मतलब का सामान बनाता है बुढ़ापे की लाठी घर की शोभा छाती का बोझा कलाई का धागा मस्त माल मख्खन जैसे गाल बाजारू खरीद दहेज़ के साथ मिली मुफ़्त चीज़ और रिश्ते खून के थाली में मिली नून के जी का जंजाल, खाल के बाल बोले सो सुनो कहे सो बनो, सपने बड़े चुनते हैं छोटे घुनते हैं रिश्ते आज़ाद करते हैं इरादों को बाज़ करते है कामयाबी को ताज करते हैं पीठ को हाथ करते हैं अकेले में बात करते हैं रिश्ते बांधते हैं रोकते हैं हर नए कदम को टोकते हैं पर काटते हैं, आपस में बाँटते हैं रिश्ते झगड़ते हैं, बिगड़ते हैं ...

कीचड़-ए-होली!

होली मुबारक हो बुरा न मानो , आज कीचड़ रंग है , इसलिये दुनिया रंगीं बनी है ! सच पूछिये तो कीचड़ में सनी है , सवाल है , साल भर कहाँ रहती है ? ये कीचड़ ? बेशरम आखों में                  कीचड़ = बलात्कार फ़ैले हुए हाथों में                  कीचड़ = रिश्वत अमीर इरादों में                  कीचड़ = किसानों की अपनी जमीन से बेदखली झूठे वादों में                  कीचड़ = राजनीति अंधे यकीनों में                  कीचड़ = ब्राह्मणवाद मज़हबी पसीनों में                  कीचड़ = दंगे . . . .  होली है सब भूल जाओ , माफ़ करो , दिल साफ़ करो यानी होली भी गंगा स्नान है साल भर की कीचड़ आज साफ़ है खुद ही गलती और खुद ही माफ़ है , बुरा न मानो जो आप का गरेबाँ फ़ाड़ दिया होली की यही रवायत है आपको क्...