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आज़ादी किस से?

खुद से छुपने को आईने पे टिकते हैं , अपने ही हाथों बड़े सस्ते बिकते हैं ! सफ़ाई देने को तमाम बातें कहते हैं , अपनी ही गंदगियों से मूँ फ़ेर रहते हैं ! बढा - चढा के बातों से शान करते हैं , वतन परस्त सच्चाई बदनाम करते हैं , मुख़्तलिफ़ राय है नाइतिफ़ाक करते हैं , क्यों शिकन है जो यूँ आज़ाद करते हैं एक ही इबारत है सब बच्चे बेचारे पड़ते हैं , फ़िर क्यों आज़ादी के इतने झंड़े गड़ते है आज़ादी के गुलाम सारे एक चाल करते है , सच साफ़ न हो जाये कम सवाल करते हैं ! जख्म नासूर हो गये है माँ के दामन तले देशप्रेम सब क्यों आँखों पर पर्दे करते हैं!  बेगैरत अपने ही मज़हब के अमीर सारे , देख दुसरे को क्यों मुँह में लार करते हैं ? मुख़्तलिफ़ - different ; नाइतिफ़ाक - Disagree; इबारत -writing style