ताजा खबरों से क्यों बदबू आती हैं? किस तहज़ीब की बात बतलाती है? बद से बदतर हैं, ये हालात, अक्सर हैं! आज सड़क पर थे, कल आपके घर पर हैं? अपने से क्यों दूर हैं, क्यों भेड़चाल मजबूर हैं? सवाल पूछना भूल गए? कही-सुनी के शूर हैं? जानकारी के उस्ताद हैं, किनारों के गोताखोर, जो नज़र में सब सच है, बस उसी का सब शोर! खुद से खामोशी है, या अजनबी मदहोशी? नज़र नही आते कत्ल या नज़रिया बहक गया? बाज़ार है, सामान भी, सच की दुकान भी, ख़रीद रहे हैं सब, ओ बस वही बिक रहा है!! डर का ख़ामोशी, न्यूज़ चैनल के शोर, तिनके डूब रहे हैं, किसके हाथों डोर? दिमाग प्रदूषित है और सोच कचरा बनी है, न जाने इंसान ने क्या क्या सच्चाई चुनी है! सूफ़ियत तमाशा बन गयी है, फ़कीरी धंधा बनी है, बाज़ार ख़ुदा हुआ है ओ सच्चाई दुकान है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।