सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

relations लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या बात करें?

कोई भी आह दिल तक पहुंच जाए कैसे वो हालात करें, सुन सकें एक दूसरे को अब ऐसी कोई बात करें! वो दौड़ ही क्यों जिसमें सब पराये हैं, तेज़ रफ़्तार दुनिया और बहुत दूर एक दूसरे से आये हैं, चाल बदलें अपनी और नयी रफ़्तार करें! ....सुन सकें एक दूसरे को अब ऐसी कोई बात करें! बच्चों के हाथ क्यों हाथ से फ़िसलते हैं, जदीद* तकनीक है के मशीनों से संभलते हैं (*आधुनिक) बचपन से बात हो ऐसे कोई व्यवहार करें! ....सुन सकें एक दूसरे को अब ऐसी कोई बात करें! अगर सोच है अलग तो आप पराए हैं, रिश्तों को सब नए मायने आए हैं,  ख़बर दुनिया की ज़हर जिगर के पार करे! .....सुन सकें एक दूसरे को अब ऐसी कोई बात करें! चल रहे हैं मीलों और अब भी बहुत दूर हैं, आप कहते हैं घर बैठे सो मजबूर हैं, कैसे दर्द मजलूमों के हमको चारागर* करें! (*Healer) ....सुन सकें एक दूसरे को अब ऐसी कोई बात करें! क़यामत है दौर और कोई नाखुदा* नहीं, (नाविक) मजबूत कदम हों खोखली दुआ नहीं वो आवाज़ जो सुकून दे, जिसका ऐतबार करें! ....सुन सकें एक दूसरे को अब ऐसी कोई बात करें!

ये क्या दौर है?

ये भी एक दौर है और वो भी... सच बदल जाते हैं, इरादों का क्या कहें? जहर खुराक बन गयी है जुबाँ नश्तर ये भी एक दौर है आसमाँ नयी ज़मीन है, सर के बल चाल है,  पैर नया सामान हैं ये भी एक दौर है मौसम कमरों के अंदर सुहाना है, ताज़ी हवा अब छुटटी बनी है बड़ा छिछोरा दौर है खूबसूरती अब रंग है, सेहत पैमानाबंद है ये तंगनज़र दौर है आज़ादी क्रेडिट कार्ड है सच्चाई फुल पेज़ इश्तेहार है ये बाज़ारू दौर है मोहब्बत सेल्फ़ी बन गयी है ज़ज्बात ई-मोज़ी हैं तन्हाई अब शोर है ये मशीनी दौर है सब कुछ तय चाहिए न खत्म होता डर चाहिए चौबीस सात खबर चाहिए बड़ा कमज़ोर दौर है भगवान अब फसाद है, मज़हब मवाद है, कड़वा स्वाद है इस दौर का ये तौर है  

रिश्ते, कड़वाहट और दो घूँट ज़हर!

तमाशा सारी बातॊं का, मेला रिश्ते नातॊं का बड़े काम का है समझो अब महकमा लातॊं का वो अपने, काम के हैं क्या, वो अपने काम के है क्या? सब अपने, नाम के हैं क्यॊं, सब अपने नाम के हैं क्या? पैदा किया तो बाप होते हैं, जबरन 'आप' होते है रिश्तॊं के नाम से न जाने कितने पाप होते हैं कभी पुरे नहीं पड़ते, अजीब उनके माप होते हैं वो "बड़े" बनते हैं उम्र के और हम खाक होते हैं  नौ महीने का अचार, कह दिया इस को मां का प्यार अपनी बात को आँसू चार, लाचार ममता या व्यापार? ममता है तो क्यॊं सिर्फ़ 'अपने' नज़र आते हैं? क्यॊं कर रिश्ते सारे खून से लकीरें बनाते हैं?  त्याग भी है और आँसू भी, और बेबसी आदत है, दुनिया ज़ुल्मी है, और हरदम इसकॊ दावत है! मर्द को जात कैसी, भुत को बात कैसी, बिन अंधेरॊं के रोशन कायनात कैसी?  आप तो मर्द है, ये मसला बड़ा सर्द है, ये कैदे उम्र है और लावारिस सब दर्द हैं! रिश्तॊं के आचार को मसाला नहीं लगता, ऎसे भी भुखे हैं कोई निवाला नहीं लगता! सारे रिश्ते खुन के, रिसते हैं तमाम उम्र, बेखबरी जख्मॊं से कैसे हो वहशियत कम! अपनी मुस्कराहट से ...