पैर ही छा ले बन गए हैं हवा के निवाले बन गए हैं, जुड़े हाथ प्या ले बने हैं अपने मुल्क के निकाले बने हैं! इस मुल्क में सब कुछ चलता है! जैसे मजदूर हजार मील ! घर बैठे टीवी पर देखने मिलता है! देश को बेरहमी से शमशान कर दिया! भुख और मौत को मुसलमान कर दिया! नफ़रत या द्वेष कहते हैं, किसने कहा देश कहते हैं! नफ़रत है, द्वेष है, भेड़िए भेड़ों के भेष हैं, बाकी सब ठीक, बड़ा प्यारा अपना दे श है! कोई सर परस्त नहीं, मुल्क को यतीम हम, दिलासे खो खले निक ले, सारे यक़ीन कम! दूरियां बनाए रखना पुरानी परंपरा है, बीमार संस्कृति बड़ी काम आ रही है! बीमारी से मुक्ति मिली, गरीबी से निज़ात, जात, धर्म पूछें तो और बिगड़ जाएगी बात!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।