पानी को कभी अहंकार करते देखा है? बस बहता है समंदर से एक होने की फ़िराक में रहता है न सूखने से डरता है न बरसने से इंसान फिर भी बाज़ नहीं आता तरसने से जमीं नहीं डरती टूटने बिखरने से मीलों खिसकने से, भसकने से, धसकने से हवा होती है पानी होती है न कोई किसी के खिलाफ है न किसी के साथ हाथों हाथ कारोबार चलता है न किसी की नियत डोलती है न किसी का दिल मचलता है सदिओं से समीकरण अपनी रेखाओं से एक है न कोई आकांक्षा न अभिलाषा इंसान अब भी जीता मरता है कोई आश्चर्य की बात नहीं की हम सबसे नए प्राणी है परिपक्व जमीं पर अभी अभी चलना सीखा है बहते बहते शायद कुछ वक़्त लगे
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।