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बेकार सरकार

(नागरिकता कानून, दिल्ली चुनाव और दंगे) नफ़रत के व्यवहार, अब सरकारी हथियार हैं, गद्दी पर बैठ मज़े लूटें, अब ऐसे जिम्मेदार हैं! (लॉकडाउन और मजदूूूर, मज़लूूूम) परवा नहीं मज़लूम की, कैसे ये हमदर्द हैं? मुँह फेर कर बैठे है, जो 56 इंच के मर्द हैं! जो सामने है वो झूठ है, सच! बस मन की बात है! लूट गई दुनिया लाखों की, ख़बर है, 'सब चंगा सी'!! (ऊपर से ताली, थाली, दिया) दिखावा है, भुलावा है, जो सरकारी दावा है, ताकत का नशा है और चौंधियाता तमाशा है! सरकार सर्वेसर्वा है, सर्वत्र, सरसवार, जिम्मेदारी की बात करी तो, छूमंतर, उड़न छू, ओझल! हज़ारों जंग हैं और लाखों लड़ रहे हैं,  सरकारी रवैये के ज़ख़्म से मर रहे हैं! सब ठीक है, कुछ भी गड़बड़ नहीं, बॉर्डर पर कबड्डी कबड्डी खेल रहे हैं? अपनी टीम के 20 गंवाए? ये किसकी तरफ से खेल रहे हैं? चश्मा बदला है या नीयत बदल गयी है, या हमेशा की तरह जुबान फिसल गई है? हर तरफ पहरे हैं, क्या राज ऐसे गहरे हैं? गुनाह छुपाने वो तानाशाह हुए जाते हैं!

ये कैसी सरकार!

आत्मनिर्भर मजदूर    घर से दूर, अपने पैरों चले हैं, सरकारी फैंसले हैं? ये कैसा सरकारी खेल है, कमजोर है वो फेल है? महंगी बड़ी रेल है, सवालों को जेल है? जाको मारे सरकारी नीती,  राख हवा में होई, कदम कदम चल मरेगा,  चाहे मदद जग होई! लोकतंत्र पर लॉकडाउन, ये कैसी सरकार हुई? मजलूमों से आँख फ़ेरती  क्यों ऐसी नाकार हुई? वादे ईरादे हैं क्या?  या सिर्फ़ बातें हैं? नीयत साफ़ नहीं,  एक यही सच बचा है! मज़बूरी को बिसात पर चाल बनाते हैं, बड़े बेगैरत हैं जो सरकार चलाते हैं! सरकार ने अपने को बचा कर रखा है, खुद से ही बस अच्छे दिन का वादा है!! मूरख सी सरकार है,  कुछ कहना बेकार है! भूखे को इज्ज़त नहीं,  हालात-ए-ज़ार है! चलिए कुछ दान करते हैं, ख़ुद को ज़रा महान करते हैं! सवाल पूछने का वक़्त नहीं, सर-आंखों सरकारी फरमान करते हैं!

तालाबंद अक्लमंद!!

मीलों थके पाँव अवाम चला है, बेशर्म भारत का नया नाम चला है! छोड़ दिया अपने हाल पर मरने, घर बैठ सुनते हैं सब काम चला है! शर्मसारः कितने आ गए मदद करने, बस किसी तरह से ये काम चला है! मर गए सड़कों पर कितने लोग, समझे? यूँ बीमारी से बचने का काम चला है! बदतरी का सलूक, दर दर भटकते से बस एक माफ़ी से उनका काम चला है! हुकम चला, लाठी ओ फरमान चला है इज़्ज़त से कहां कोई काम चला है? बिठा दिया बीच सड़क छिड़कने को दवा, और पाँच सितारा किसी का इंतज़ाम चला है? राम के कारनामे और किशन के प्रपंच, एकलव्य का अब भी काम तमाम चला है! कर दिया एलान घर बैठने का अचानक बेघर तभी से तले आसमान चला है! घर बैठे ताली मारते बड़े बेशर्म हैं आप, क़यामत इस मुल्क का अंजाम चला है!!