ज़िंदगी नाम है, या काम? संज्ञा, सर्वनाम? क्रिया, विशेषण? या ये सब तमाम? क्रिया बिन क्या नाम? नाम बिन कोई काम? काम कोई विशेष हो जो बन जाए सर्वनाम? या सर्वनाम काम है? जैसे उपनाम है, जन्म दर जन्म, आपको जकड़े हुए, जात, धर्म विशेषण, क्रिया एक शोषण? कुरीति, कुपोषण? और उन सबका क्या, जो बेनाम हैं, उनके लाखों काम हैं, न उनकी कोई संज्ञा, न कोई सर्वनाम है! भाषा से ही, भाषा में भी उनका काम तमाम है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।