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क्या देखा!

सपनों के हक़ीकत बनने कि बात करते हो, हमने अकीदत को यहां खुदा बनते देखा है! खुद में मसरूफ़ होकर महफ़ूज़ नहीं होते, हमने खुदा को भी तो यहां लुटते देखा है! कल जमाना खुशियों पर मगरूर था, आज उसको लकीर पीटते देखा है! वक्त का घोड़ा हम सब पर सवार है, हमने कब वक्त के उस ओर देखा है? देखी तो हमने भी बहुत सारी दुनिया खुली  आंख  सुबह तो कुछ और देखा है! वही मातम अपनों को, परायों की नुमाईश है, अपनों से आगे हमने, कहां कुछ और देखा है? माना ये दुनिया हर तरफ़ लक्ष्मण रेखा है, हमने भी पलट कर कहां‌ खुद को देखा है! नफ़रत की क़ैद में अब सारी आशनाई है, पहले कहाँ इतना कुछ नागवार देखा है? डर ने घर बना लिए हैं कितने ज़हन में, बड़े फ़ायदे का किसीने कारोबार देखा है! शक ही काफ़ी है गुनहगार बनाने को, जहां देखा भीड़ का इंसाफ़ देखा है! इंसाफ़ की कब्र पर मंदिर बनते हैं, इस सदी भी ऐसा रामराज देखा है!

इतफ़ाकी मोहब्बत अपवादी इश्क़!

हाथ पकड़ लेंगे मंझधारे, साहिल कब से सोच खड़े हैं, बरसों से रस्ता तकते धारे हैं, सोच किनारे किस बात अड़े हैं! पहली नज़र का प्यार क्या है? एक उम्र इंतज़ार क्या है? हमेशा रहेगा एतबार क्या है? सर पर भूत सवार क्या है? इश्क एक एहसास है, एक लम्हा कोइ खास है क्यों उम्र भर उम्मीद ओ' सात जन्म कि बात है? मोहब्ब्त में हर घड़ी जन्नत है, फ़िर क्यों सात जन्म की मन्नत है? इश्क जिस्म है तो तमाम हैं, रुह है तो एक है, इतेहाद है, ज़ज़्बात है तो पल की बात, सोच, एक ख़याली पुलाव है! दो दिल मिल जाऐं तो इश्क है, ख़्यालात एक हों तो इश्क़ है, मुख़ालिफ़त दिलकशी की बात, क्यों किसी को किसी से रश्क है? इश्क़ घरफुँक तमाशा है, जन्नत नसीबी का रास्ता है, कोई एकदम अकेला इसमें, किसी का दुनिया से वास्ता है! जिस इश्क़ में सब जायज़ है, वो सोच कितनी नाज़ायज़ है?

जिंदगी साली मौत की घरवाली

हम को ही हम से छीनता है ये ज़िन्दगी का कमीनापन हैं! जिंदगी पर मेरे बड़े एहसान हैं, कैंसर के बदले मुस्कराहटें दी हैं! जीने का और बहुत मन है सिगरेट जैसी बड़ी बुरी लत है! हमें नहीं लड़नी कोई भी लड़ाई जिन्दगी अखाड़ा है ये बात पहले नहीं बतायी! हाँ नहीं तो! मौत कितनी पेटू,कितनी अघोरी है, तमाम ज़िन्दगी सूत के भी भूखी है! ज़िंदगी हाथ धो के पीछे पड़ती है, मौत से मिलीजुली साज़िश लगती है जब देखो बीमारी परस देती है ज़िन्दगी बड़ी बेगैरत मेज़बान है ज़िंदगी मौत के बीच इंसाँ फुटबॉल है, एक ने किक किया दूसरी तरफ गोल है! कहते हैं शरीर बस आत्मा का खोल है, पर मूरख आत्मा क्या जाने, बर्फी चौकोर लड्डू गोल है? कहते हैं आत्मा अमर शरीर नशवर है बेईमान सप्लायर है अगर घटिया घर है? ज़िन्दगी साली मौत की घरवाली निकली, निकला मतलब तो मुँ पलट के चल दी!! (उन जुझारुओं की झुंझलाहट को समर्पित जिन्हें अपनी हिम्मत और लगन केंसर जैसी फ़ालतू बीमारियों से लड़ने और उनके रस्ते अड़ने में लगानी पड़ती है)

जिंदगी ज़हर?

ज़िंदगी सबसे बड़ा ज़हर है, जो भी जिया उसके मरने की खबर है, रेबीज़ है, कुत्ते कि काट से भी ज्यादा घातक, सुना है, जिंदगी एक बार ड़स ले, तो उसका असर, सौ-सौ साल बाद भी नज़र आता है, बचता कोई नहीं, जिंदगी से सबका पत्ता कट जाता है, यानी इंसान दुनिया का सबसे मूरख जीव है, बेइंतहा कोशिश जिंदगी बढाने की, नशे की आदत ऐसी कि बस, 'जीना है, जीना है' की रट है, हम से तो मच्छर, चींटी अच्छे, जानते हैं चार दिन है या और कम,  फ़िर भी बेखौफ़ इतने लगे हैं, अपना आज़ संवारने में, आज भी नहीं - - - अब, इस लम्हे को बना रहे हैं सच के आज़ाद, और पेड़, पौधे जो एक जगह खड़े-खड़े बड़े हो गये, न आगे आने की रेस में दौड़े, न उम्मीद की जो नाउम्मीद छोड़े, न पलायन की कही कुछ और बेहतर है, जंहा थे वहीं के हो गये, ताड़, झुरमुट, बरगद, बबूल, फ़ूल, पाईन, वाईन(बेल) इसलिये नहीं कि इनके बाजु कोई बल गये बस जरूरत थी सो ढल गये, कुछ नहीं तो घांस हो कर चरा गये, दिल बाग-बाग हो गया, पालक मैथी का साग हो गया, अपने छोटेपन का बेचारा नहीं बने चारा बन गये, दूध बन कर...

एक बात की सौ बात!

खुद से दूर जाने की कोशिश तमाम की मैंने जाने अपनी कितनी नींदे हराम की, किसको नज़र आये चेहरे के रेगिस्थान क्यूँ अपनी सारी मुस्कराहट शमशान की? हमसफ़र, साथ देने के शौक तन्हा कर गए हाथ आये फ़ासले जब भी, राय कोई आम की शराफत के सब सौदाई, इतनी इज्ज़त-अफज़ाई कहाँ खरीददार कोई, जो दुकान-ए-ईमान की बंजर जमीन ने कितने इरादे चट्टान किये यूँ माथे की सारी परेशानी पीक-ए-पान की चलते रहे, यूँ अपने ही तूफानों के छोर थाम हमने कहाँ कभी अपनी, मुश्किल आसान की