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इरादा-ए-इत्तफाक!!

यूँ की यूँ ही कुछ नहीं होता, इत्तफाक से, एक आग है, जो पलती है, ओ जलती है, आपके एहसास, रवैये में, जज़्बे में, बात में, आपके सवाल, आज़ाद हैं,  आपके कब्ज़े में दम नहीं तोड़ते, दुनिया की ज़ंजीरो में, हरदम तय तस्वीरों में, जो आपको समेटना चाहती हैं, अपने रंग-ढंग और तौर में, आप जुदा हैं, इसलिए गुमशुदा हैं, अपनों में, ढूंढते, हमदिली! (समर्पित उस जज़्बे को जो लड़की होने की सारी चुनौतियों से दो-चार होते, अकेले, अपने सच को तलाशती रहती है)