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मुर्दा बड़ा मस्त है!

कुछ नहीं न होना, बहुत खल रहा है, कुछ ऐसा ये दौर चल रहा है, अपने आराम के बेशरम हो गए हैं, भूला, भुलावा अब छल रहा है। घर जंजीर है, जर जंजीर है, तमाम तामीर जंजीर है, यूं होना ही गुनाह है, और गुनाह पल रहा है। दायरे ख़त्म हैं सारे के सारे, हर हद की जद है, शोर जितना है हर घर वहीं खामोशी बेहद है! कातिल हैं अपने ही, अपनी ही कब्र बने बैठे है, बदल गए हैं उफ़क सारे, बस नाउम्मीदी के सहारे हैं! हंस रहे हैं, मुस्करा रहे हैं, खुद को गंवा रहे हैं, आईने तमाम हैं बाजार में, पैसे बड़े काम आ रहे हैं!!