कुछ नहीं न होना, बहुत खल रहा है, कुछ ऐसा ये दौर चल रहा है, अपने आराम के बेशरम हो गए हैं, भूला, भुलावा अब छल रहा है। घर जंजीर है, जर जंजीर है, तमाम तामीर जंजीर है, यूं होना ही गुनाह है, और गुनाह पल रहा है। दायरे ख़त्म हैं सारे के सारे, हर हद की जद है, शोर जितना है हर घर वहीं खामोशी बेहद है! कातिल हैं अपने ही, अपनी ही कब्र बने बैठे है, बदल गए हैं उफ़क सारे, बस नाउम्मीदी के सहारे हैं! हंस रहे हैं, मुस्करा रहे हैं, खुद को गंवा रहे हैं, आईने तमाम हैं बाजार में, पैसे बड़े काम आ रहे हैं!!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।