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गाली-ए-दीवाली! (the curse of Diwali)

फ़िर वो वक्त कि निकले मुहं से गाली, आ गयी फ़िर से साली दीवाली, अब रात को सुरज चमकेंगे, और हवा को सबक सिखाया जायेगा, कानों की वाट लगायी जायेगी, और कमीनी आतिशबाज़ी अंधियाएगी! पैसा और बेशरम बन जायेगा! खाली जेबों को मुंह चिड़ायेगा, शुभकामनायें बिन बुलाई मेहमान होंगी, कपटी इरादों में नयी जान होगी,  ताकतवरों को रिश्वत देने का मौसम,  फ़िर चाहे उनका नाम भगवान हो, या पहलवान, सबकी आंखों में सरेआम लक्ष्मी नंगा नाच करेंगी, उद्दंड़ ईमान की बोली होगी! गंवार बच्चों के पसीनों की लड़ी  अमीर अंहकार की बलि चड़ेंगी, अगली सुबह मिलिये, हमारी गौरवपुर्ण संस्क्रती, कचरा बन गलियों में धुल चाट रही होगी, और कुछ बेगैरत कमरें उन में, अपनी नालायक किस्मतें तलाश रही होंगी! और जब शाम यौवन पर आयेगी, तो सोलह से चालिस की कुल्लछिनियाएं, लाल बत्तीयों वाली सड़कों पर, ललचाने वाला लाल लगाकर बड़ी ललायत से लचकती कमर और लुके-छिपे कमरों की लालसा जगाकर कितने मां के लालों की द्रोपदी बनेंगी, अपने "लाल" को निर्वस्त्र करके, समाज़ की गाली होंगी, और अनगिनत कुंठाओं की दीवाली होंगी!   इस उम्मीद से क...