ग़रीबी ने चलना शुरू किया रास्ते लुट गई, अकेली थी, बेचारी हो गई, ये कैसी हमको बीमारी हो गई? मजदूर था, घर से दूर था, फ़िर मजबूर हो गया, चलते चलते, खून सारा पानी हो गया, बिन ईद कुर्बानी हो गया! पैर छोटे थे, और रास्ते लंबे हो गए, हड्डियां बोलने लगीं, पैरों के छालों से, पिचके गालों से ये नए खेल! कमजोरी कंधे सवार हो गई, और सारी जमापूंजी, बोझ बन गई, टूटते कंधों में फिर भी उम्मीद है, सपने भी, इज़्ज़त के साथ मरने के! और घर की बात घर में तालाबंद है, सात जनम का संग है, थप्पड़ ओ लात, फ़िर हुई मुलाक़ात नई बोतल के साथ! देशभक्त, अनुशासन युक्त, एक वर्ग, खुश है, इस मुश्किल दौर में सोच मुक्त है, सरकार से कंधा मिलाए, देश चल रहा है, बढ़िया से घर बैठे! रामराज्य!!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।