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अदने से सच!

ग़रीबी ने चलना शुरू किया रास्ते लुट गई, अकेली थी, बेचारी हो गई, ये कैसी हमको बीमारी हो गई? मजदूर था, घर से दूर था, फ़िर मजबूर हो गया, चलते चलते, खून सारा पानी हो गया, बिन ईद कुर्बानी हो गया! पैर छोटे थे, और रास्ते लंबे हो गए, हड्डियां बोलने लगीं, पैरों के छालों से, पिचके गालों से ये नए खेल! कमजोरी कंधे सवार हो गई, और सारी जमापूंजी, बोझ बन गई, टूटते कंधों में फिर भी उम्मीद है, सपने भी, इज़्ज़त के साथ मरने के! और घर की बात घर में तालाबंद है, सात जनम का संग है, थप्पड़ ओ लात, फ़िर हुई मुलाक़ात नई बोतल के साथ! देशभक्त, अनुशासन युक्त, एक वर्ग, खुश है, इस मुश्किल दौर में सोच मुक्त है, सरकार से कंधा मिलाए, देश चल रहा है, बढ़िया से घर बैठे! रामराज्य!!

मेरा भारत महान !

भारत एक देश है या बेबसी में वैश्या बनी माँ का भेष है एक ही सच का सब ऐश है हर मुश्किल का हल सिर्फ कैश है लो कर लो बात! बदलाव को क्या चाहिए लात या हाथ, मज़बूरी के हाथ, ताकत की लात, कुछ लोग मनवा लेते हैं अपनी हर बात , गरीबों हटाओ, मंदिर बनाओ सवाल ? देश नक़्शे में खिंची लकीरों से परिभाषित है या रहने वालों की आशाओं से उजागर या पस्त हुई सांसों में अस्त बड़ी सड़कें, ऊँचे मकान, सुगर फ्री पकवान, विदेशी कंपनियां, अप्रवासी भारतीय मेहमान, मेड इन इंडिया सामान विदेशों में बिकता है, गेहूँ गोदामों में फिंकता है आज हमारा बाजार गरम है बस शर्त इतनी है की त्वचा गोरी ओर नरम है, हाँ, हैं कुछ लोग जो तरक्की के साथ नहीं चल पा रहे नींद नहीं आती, इसलिए सपने भी नहीं आ रहे, जाहिर है, देश को आगे ले जाना है तो, नज़र अंदाज़ करना होगा! उस वर्ग को, जो अपनी भूख को ही खा रहे, सच है, गरीबी भी एक नशा है, एक बार चरस छुट जाये, पर गरीबी, ये नशा, जो ना करवा दे वो कम, माँ, बेटी को सजा रही है, ये भारत देश है या बेबसी में वैश्या बनी माँ का भेष है!