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वक्त के बाद

वक्त सही है साथ नहीं साथ सही है वक्त नहीं, वो ख़ास लम्हा हो, ये खत्म होती तलाश नहीं! जो है पास वो क्या है उसकी क्या जगह है? नज़र भटक रही उस मोड़, शायद बेहतर सुबह है? जो दरारें हैं वही आप हैं, मरम्मत करना बेकार है! कोई लम्हा, कोई ख़ास, एक फ़रेब है ये एहसास!!  आप जब आप होते हैं, वक्त के बाद होते हैं, दिलों के साथ आने के मा'क़ूल हालात होते हैं! (मा'क़ूल - appropriate)  लगा दिए हैं पैमाने ओ ताउम्र हम नाप रहे हैं, दुनिया के कहे पर, कम, ख़ुद को आंक रहे हैं! (ताउम्र -whole life) वक्त के बाद होइए  ज़रा आजाद होइए, इंतजार ज़ंजीर है, आप बस आप होइए!! (created from the text on a insta status)  right person, wrong time right person, wrong time if it's right, you won't know. because you're too busy looking for the right person, too busy looking for the right time and the perfect moment. And while you're stuck searching, ironically you are losing what you have already found. Losing a piece of who you are because you're tryin to fix the cracks in your life with a person, a m...

नाकाफियत!

क्यों उन रास्तों से गुजरते हैं जो अपनी नजर में चढ़ते उतरते हैं? कहां पहुंचेंगे? सही जा रहे हैं क्या? भटक गए तो? अटक गए अगर? साथ मिलेगा क्या? कैसे होंगे लोग? उस डगर, गांव, शहर? अगर–मगर, अगर–मगर, अगर–मगर दम फूल गई, क्या भूल हुई? हार गए क्या? कमजोर हैं? नहीं जाएंगे ही! पहुंच कर दम लेंगे! वो लोग कर लिए तो! हम क्या कम हैं? हर मंजिल सांतवा आसमान है, कामयाबी,  अगली लड़ाई के लिए, हौंसला–कमाई, कहीं पहुंच जाना जैसे जंग की फतह है! ये सोच कितनी सतह है! आख़िर किसका जोर है? जहन में, जिस्म में, कितना शोर है? देखो जरा आस–पास,  पेड़, पानी, जमीन, जंगल खड़े हैं सो खड़े हैं, पड़े हैं सो पड़े हैं बहते बहे हैं, चलते चले हैं, फिर भी पल–पल बदल रहे हैं, हर लम्हा संभल रहे हैं, खुद ही रास्ता हैं, और अपना ही मकाम हैं, कुछ साबित नहीं करना, न खुद को न दुनिया को! पूरे नहीं है,  न मुकम्मल हैं, पर कुछ कम भी नहीं है , जो हैं बस वही हैं! इसमें कहां कुछ गलत–सही है? नाकाफियत – एक नकारात्मक एहसास, शिक्षा और संस्कार द्वारा पैदा की गई बीमारी जो लोगों के जहन में ये सोच डालती है कि आपमें कोई कमी है और आप हमेशा बड...

कुछ होना है!

"कुछ होना है" खेल है, दुनिया का! आप खिलौना हैं! सच तमाम है,  झूठ बोलते, उसके सामने आप बौना हैं! आप कम है, क्योंकि कोई ज्यादा है, खेल घिनौना है! कंधे किसी के सीढ़ी किसी को कामयाबी भी बोझ ढोना है! तराज़ू किस के, नाप किसका बाज़ार बड़ा है, आप नमूना हैं! रंग फीका है, ऊंचाई टीका है, वज़न ज्यादा कम मुश्किल होना है! "मैं" पहचान, पीड़ा, अभिमान, बड़ी तस्वीर, आप एक कोना हैं!

पहचानें!!

अपनी नजर से खुद को देख पाएं कभी ऐसा एक आइना बना पाएं! शोर बहुत है मेरी नाप तौल का , कोई तराज़ू मेरा वज़न समझ पाए? छोटा बड़ा अच्छा बुरा कम जादा, वो सांचा कहां जिसमें समा जाएं? नहीं उतरना किसी उम्मीद को खरा! जंजीरें हैं सब गर आप समझ पाएं! मुबारकें सारी, रास्ता तय करती हैं, 'न!' छोड़! चल अपने रास्ते जाएं!! वही करना है जो पक्का है, तय है? काहे न फिर बात ख़त्म कर पाएं? अलग नहीं कोई किसी से कभी भी, ज़रा सी बात जो ज़रा समझ पाएं!!

तराजू का सामान

इंसाँ होने की कोशिश हज़ार हैं, पर अकेला बेचारा क्या करेगा! सब अपनी शोहरत के सामान हैं बेवजह ही आईने बदनाम हैं हमसे नहीं होता कामयाबी का खेल, वो फिर भी कहते हैं हम इंसान हैं अपनी तस्वीरों के सब गुलाम हैं और हमको लगता है भगवान हैं अगर सच अद्वैत है तो दोगला है मज़हब का नतीजा बड़ा खोखला है घूमते लिख के डिग्री ओ तजुर्बा माथे पर शायद कोई रख्खे की काम का सामान हैं आपकी तराजू आप की मुबारक हम क्यों किसी के काबिल बनें आचरण के दर्ज़ी तमाम हो गए इंसान नापने के काम आम हो गए