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पूरा अधूरापन!

पुरा होने का शौक किसको है, चलिये थोड़ा कम हो जायें! कामयाबी का जिक्र कहाँ है, आसाँ काँटों की चुभन हो जाये!    मंज़िलों को दिलासा देने को सपनों को जरा भरम हो जाये  होंगे जो नज़र आसमान करते हैं, क्या बुरा गर जमीनी रंग हो जायें! बेरुखी मौसम खराब करती है, बेहतर है थोड़ा नम हो जायें! खामियाँ हैं सबकी ड़र किसका, कि यूँ आसानी से हज़म हो जायें! पूरा होना है अगर आपको, लीजे मेरा अधूरापन हो जाये!

अधूरापन

मुझे मोक्ष का मोह नहीं न ही सत्य की लालसा है अपने अहंकार से कोई भय नहीं न मुझे मंदिरों की कैद पसंद है न ही अपनी बुद्धि का प्रभुत्व मैं अपने अधूरेपन का उपासक हूँ मैं अपनी गलतिओं से नहीं सीखता न ही अपनी भूलों से पछताता हूँ न मुझे इतिहास की गुलामी पसंद है और न ही भविष्य पर सियासत मैं लम्हों का हिसाब नहीं रखता उम्र के साथ घटना बढना मेरा सामर्थ नहीं मैं अपनी बातों का साक्षी नहीं आज मैं हूँ, कल मैं भी (may be) नहीं मैं अपने अधूरेपन का उपासक हूँ मैं प्रारंभ ही नहीं हुआ अंततः क्या? अनंत से प्यार है अंत से नहीं डरता अपने से प्यार नहीं है पर इंकार भी नहीं चल रहा हूँ पर पहुँचने के लिये नहीं ये अधूरेपन का सफर है अधूरा हूँ नदी बन बहता हूँ कवि हूँ ? इसलिए कहता हूँ मैं अधूरेपन का उपासक हूँ.

शुरुवात अधूरेपन की

आज एक और शुरुवात, अब और भी कुछ अधूरा होगा आपका साथ है तो कौन जाने किस करवट सबेरा होगा बात दिल कि क्यों किसी तक पहुँचाएं, जो मेरा है वो सच जरूर तेरा भी होगा! कहते हैं सदियों से कि दिया तले अंधेरा होगा, लाजिम है देखने वाली नज़रों को फ़ेरा होगा? मैं बस अपनी समझ का ठेका लूँगा इसमें क्या किसी से राय-मशवरा होगा? अपने कई अंदाज़ों से मैं भी अजनबी हूँ, दो मुलाकात में न सोचें एक सच पूरा होगा! अक्सर वो मुझे मेरी कमियाँ गिंनाते हैं, अधुरा करते हैं ये सोच के कि पूरा होगा! यूँ नहीं कि अपनी खामियों को अज्ञात हैं पर सफ़र में वो सामान नहीं मेरा होगा!