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निसर्ग गौरव!

अपने आप में समय को समाये हुए धरा पर हम सब से ज्यादा जीवित दानवी आकार आकाश को असीमित करती हुई उँचाई और प्राकृतिक विविधा का परिचय देती चौड़ाई साथ खड़े रेड़वुड़ वृक्षॊं के बीच अपनी वरिष्ठता का परिचय देती सब के उपर छायी हुयी , और वृक्षॊं को कभी आग ने भी छूआ था पर इसके उपर कोई निशान ही नहीं इतिहास की सारी काली परछाइयॊं के पार कितने युध्ध कितनी ही मानवी बेशर्मियॊं और दुखॊं के परे आकाशी आग को गहे जमीनी आग को सहे कितने आंधी - तुफ़ानॊं को धराशायी कर अनछुयी , राजसी , अलग एकदम अकेली गौरवपुर्ण ! (जे. कृष्णमूर्ति की पर्यावरण सोच से निचोड़ी एक अभिव्यक्ति)