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सुनने की सर्दियाँ!

हमारे अंदर जो बेशकीमती है, उसे अछूता रहना है हमारी सोच से जो हमारे होने को कम करती है| उम्दा होने की जो हमारी लड़ाई है, उससे नहीं बनी नन्हे फरिश्ते सी मनचाही हमारी बानी| जो विचलित करती है फिर अपने पनपने को उस सब के साथ जो जरूरी है| खुद की वो बात जिससे हमे नफ़रत है, और हमें नहीं पता कि वो हममें कहाँ है पर जो तरीकों में नज़र आए, उसको समझाने की जरूरत नहीं| हर किसी के भीतर एक असीम आनंद की किलकारी है जन्म लेने को तैयार| और यहां बड़बड़ाती रात में मुझे सुनाई देती है, अखरोट पेड़ की बच्चे के पालने ऊपर लहलाहट, अपने अंधेरी शाखाओं से हवा में और अब बरसात आकर मेरी खिड़की पर दस्तख़ देती है और कहीं और तारों और हवा की इस ठंडी रात में, वो पहली बुदबुदाहट है, उन छुपी और नज़र न आने वाली वसंत कि अंगड़ाई की, ठहरी गर्मी की हवा की वजह से, हर एक अभी तक अकल्पित, सर उठाती हुई!!

बाप रे बाप!

अपने ही अपनों के बाप हो रहे हैं, आजकल सब घूंसा लात हो रहे हैं! सुनना किसे है, बोलना सबको हैं, जो नहीं चाहिए वो जमात हो रहे हैं। लंबी लड़ाई है ओ सब को जल्दी है, नतीज़ों के सब हालात हो रहे हैं! सवाल मत पूछो इन हुक्मरानों से, ताकत को सब आदाब हो रहे हैं! सच इश्तेहार नहीं, इश्तेहार सच है, काले पैसे किस के आबाद हो रहे हैं? रज़ामंद हो या पाकिस्तान चले जाओ देश भक्ति के नए जज़्बात हो रहे हैं!   प्रधान मन की बात, मनमानी है, जुमले सारे ख़यालात हो रहे हैं! अपनी बात तय, है उसी की जय-जय एकतरफ़ा सब ताल्लुकात  हो रहे हैं! मंदिर वहीं बनाते, गाय कहाँ ले जाते? कातिल आपके सवालात हो रहे हैं!!