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क्या कहेंगे?

(दोस्त- एक और लड़ाई केंसर में खो गयी, मेरी एक दोस्त जो इतने सालों इस लड़ाई में मेरे साथ थी _ _ _हकीकत को सपनों में ओझल होते हमने देखा है _ _ _ मैं -इस क्षति को हम क्या समझेंगे, सुनने कि बस एक कोशिश है ये अनुराग) हौंसले गुम हैं इश्तेहारों में कहीं, जो खबर है उसकी जगह कहाँ रस्ते गुज़र गए और चंद हमसफ़र भी, मंज़िलें का क्या करेंगे मुसाफिर? साथ भी है, मुश्किलों में हाथ भी हैं, जो बात खुद से करनी है उसका क्या? अफ़सोस बहुत है उन के गुजर जाने का याद आती है अश्कों में और मुस्करा देते हैं! दर्द समझने के और, और, कुछ समेट रखने के वो एक खालीपन सा है जो अनछुआ सा है! ज़िन्दगी ज़ीनी भी है और पीनी भी है, चादर ओढ़ी जो है जो भीनी सी है! नज़र आ जाएंगे हम जो आप गौर करें, मेरी मुश्किलों से मेरी पहचान न हो! वो लम्हे जब हम खुद को न देख पायें, जो करीब है वो भी बड़े दूर नज़र आयें! काश मुश्किलें मेहमान होतीं,  ज़िंदगी थोड़ी आसान होती!