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पैरों तले ज़मीन!

ताक़त नशा है,  नशा लत होता है,  लत मजबूरी बनती है,  सच से,  ईमान से दूरी बनती है,  अपनी सोच,  जरूरत बनती है,  बस फिर क्या,  साम दाम दंड भेद,  फिर क्या खेद? सब शरीफ़ हैं,  कहीं न कहीं,  दायरे बस अलग अलग,  कोई दुनिया का है,  कोई देश का,  कोई धर्म का, जात का,  कोई मर्द बात का  कोई जमीन का,  कोई कुदरत-ब्रम्हांड का!  आप कितनों के शरीफ हैं? सब की लड़ाई है,  किस से?  किस वजह से?  अपने लिए, अपनों के लिए  खोए सपनों के लिए?  अपनी हदों से लड़ाई है  या  सरहद गंवाई है?  यकीन से जंग है?  या बंद आँख देशभक्त है?  उनका सोचें,  जो भूख से लड़ते हैं?

गणमंत्र दिवस स्वाहा!

देवी है, माता है, इज़्ज़त है हर 'मर्द' की, फिर भी दवा नहीं कोई इसके दर्द की (बलात्कार जैसे देश की संस्कृति है) कोई देशभक्त गुंडा गाली देगा इसका भय है मज़बूरी में कहते जय जय जय जय है! (सिनेमाघर में डर के मारे देशभक्त बनाये जा रहे हैं) भेड़िये भेड़ बने हैं, तोड़ मस्जिद नफ़रत पालते हैं, मज़हब का सब पर जाल डालते हैं। (आर एस एस) भीड़ में सब खड़े हो गए, खासे चिकने घड़े हो गए, सोच के दड़बे हो गए, 'एक' के टुकड़े हो गए (भक्त जो विविधता का खून कर रहे हैं) बाबरी की छत टूटी, संविधान की इज्जत लूटी, अब सत्ता में हैं, देश कि तो किस्मत फूटी! (आप खुद समझदार हैं) पूरा मुल्क सावधान है, तहज़ीब को विश्राम है जिसने सर उठाया उसको काले रंग का नया ज्ञान है! (विरोध अब हिंसा है, जो हट कर बोले उसको मुँह काला कर घरवापस करते हैं) जन जन क्या मन है? क्यों इतना पिछड़ापन है?? (आपको विकास दिखता है या गांव और स्लम में उसका अवकाश) जय जय जय जय है, क्यों देशभक्ति का नाम भय है? ( क्यों हम इतने डरे हैं कि किसी के सवाल उठाने से आक्रमक हो जाते हैं) भारत माता की जय, रोज़ खबर है, अच्छाई पर ...

हिंसा और हम-आप!

हिंसा क्या है, टॉम और जैरी की, मारापीट को देख, उछलते, बच्चे को देख कर खुश होना! हिंसा क्या है,  जात-पात,मज़हब, अगर वजह है, कि दिल में कम जगह है! हिंसा क्या है, कचरे के ढेर में गैरकानूनी घर बसाये लागों की बेदखली! हिंसा क्या है? मां-बाप नहीं सुनते, बच्चे ने कहा है, उसे किसी ने छुआ है! हिंसा क्या है 4 साल के बच्चे का स्कुल से आना और होमवर्क पर बैठना! हिंसा क्या है, भीड़ में, मैले कपड़ों में कोई पास गुजर गया, आप छिटक कर दूर गए! हिंसा क्या है, आपके घर नौकरानी है कुछ आपका खो गया, कहाँ आपका शक गया? हिंसा क्या है, आपकी माँ है कपडे आपके, और वो धो रही हैं! सालों से! हिंसा क्या है, कभी गाली दी है, और आपकी भी, मां-बहन है! हिंसा क्या है, गुटखा थूकते हुए साइकिल रिक्शे से कहना, ज्यादा होशियार मत बनो! हिंसा क्या है, किसी की जात पूछना, और ख़ुश होना अगर वो आपके जैसा है!  हिंसा क्या है, धार्मिक होना और दूसरे धर्म का मज़ाक उड़ाना! हिंसा क्या है, जो भी हो, बेवजह है! आप को गुस्सा आया? हिंसा क्या है, लड़की दे...

तलाश का इन्तेज़ार

वो रोशन रात थी या उज़ालॊं की लाश थी   बुलंद इमारत, कामयाब इबारत, अंदाज़ जश्न के, और इतनी रोशनी कि सच्चाई जल गयी, ठिठुरती बेबसी अधनंगी सी, कैसे पल गयी, " काश” होती एक जिंदगी, जैसे गड़्ड़ी से फ़िसल गया ताश कोई, बेसबर नज़र इस आस में‌ कि मिलेगी तलाश कोई, और हम बस चल रहे हैं,  एक और शाम, और हम निगल रहे हैं, अंदाज़ भी है, एहसास भी, इरादे भी, फ़िर भी सहारा दे नहीं पाती,  तिनका हुँ? पर खुद भी बह रही हुँ, किनारा होने को . . . . क्या नहीं दे दुं! नज़रें बेबस से नहीं मिलीं,  पर खुद की बेबसी संभल गयी, एक रास्ता नहीं मिला, पर अपनी सुबह को रोशनी दिखा दी, कैसे कहुँ मज़बुरी थी, मेरी नज़रॊं ने आज़ मेरी उम्मीदें जगा दीं! आमीन! - किसी के फेसबुक स्टेटस से चुराई, नीचे लिखी भावनाओं को समझने की एक कोशिश,  ["And on my evening walk I see this huge bunglow flooded with lighting, must be a wedding home and outside the house lay a half clad begger shivering in the cold..........and I feel so small about being able to do nothing about this 'george of life'. If only...