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मन के मौसम!

  मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, बादल ले कर आसमां आ रहे हैं, रंगों को कुदरत से छलका रहे हैं, ब्रशस्ट्रोक हवाओं के लहरा रहे हैं, कैनवास पल–पल बदल आ रहे हैं, ज़मीन पैरों तले पिघला रहे हैं, खड़े हैं जहां, वहीं बहे जा रहे हैं, मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, और वहीं हैं हम जहां जा रहे हैं! पहुंचे थे पहले पर अभी आ रहे हैं मूर्ख हैं जो वक्त से नापने जा रहे हैं, खर्च वही है सब जो कमा रहे हैं, दुनिया कहेगी के गंवा रहे हैं, और जागे हैं जब से जो मुस्करा रहे हैं!

वक्त के बाद

वक्त सही है साथ नहीं साथ सही है वक्त नहीं, वो ख़ास लम्हा हो, ये खत्म होती तलाश नहीं! जो है पास वो क्या है उसकी क्या जगह है? नज़र भटक रही उस मोड़, शायद बेहतर सुबह है? जो दरारें हैं वही आप हैं, मरम्मत करना बेकार है! कोई लम्हा, कोई ख़ास, एक फ़रेब है ये एहसास!!  आप जब आप होते हैं, वक्त के बाद होते हैं, दिलों के साथ आने के मा'क़ूल हालात होते हैं! (मा'क़ूल - appropriate)  लगा दिए हैं पैमाने ओ ताउम्र हम नाप रहे हैं, दुनिया के कहे पर, कम, ख़ुद को आंक रहे हैं! (ताउम्र -whole life) वक्त के बाद होइए  ज़रा आजाद होइए, इंतजार ज़ंजीर है, आप बस आप होइए!! (created from the text on a insta status)  right person, wrong time right person, wrong time if it's right, you won't know. because you're too busy looking for the right person, too busy looking for the right time and the perfect moment. And while you're stuck searching, ironically you are losing what you have already found. Losing a piece of who you are because you're tryin to fix the cracks in your life with a person, a m...

टाईमपास!

वक्त टूट कर बिखरा पड़ा है, कहीं छोटा कहीं बड़ा है, 'तर', कहीं प्यासा पड़ा है, आख़िर में चिकना घड़ा है, कोई भी लम्हा कब तड़प उठता है, कोई पल मुँह बाएं खड़ा है, कोई घड़ी, हाथ से फिसलती है, कोई सदी बन टिकी है, कोई इंतज़ार उम्र होता है, कोई पलक झपकते गुम, और इस खेल में कहाँ हैं हम? कभी वक्त फ़ायदा है, कभी सारी मुसीबतों की जड़, कभी हाथ नहीं आता, समय, कभी मौसम बन छा जाता है, किसी को रास नहीं, किसी को भा जाता है? किसी के गले तलवार, किसी के लिए घुड़सवार, किसी के पास समय नहीं, बिल्कुल भी, वक्त किसी का बचा नहीं, हमें कुछ हो, समय का क्या जाता है, बेशर्म! वही अपने रास्ते चला, वक्त बहुरूपिया है, हर पल, घड़ी, लम्हा युग, काल,  बदलता है, फिर भी, रुका है किसी के लिए, किसी को लगे  चलता है! बदल रहे हैं आप, समय को, या समय आपको बदलता है? बात गहरी है, और टाईमपास भी, है आपके पास? टाईम?

समय समंदर!

साथ समंदर साथ साथ एकांत साथ दुनिया सारी, जमीं समंदर आसमाँ सूरज साथ सब पर नहीं कोई किसी पर सवार, एक दूसरे को सब, साथ, फिर भी अकेले पहचान से मुक्त, साथ, कभी लहर समंदर, कभी समंदर लहर, कभी चट्टान, मजबूत सीना तान, अगले पल भाव-विहोर समंदर में लीन विहीन, उजागर भीगे, डूबे, निहित, खामोश, खिलखिलाते, सच, हाथ आते, फिसलते, अपनी शर्तों पर मिलते, ओ पिघलते सब यहीं हैं, आकाश और अवकाश आपके हाथ आने को तैयार, गर आप रुकें, बस उतनी देर, की समय समंदर हो, क्या आप को फुर्सत है?

वक्त साकी वक्त पैमाना!

इश्क सलामत है कयामत को असर करने को , युँ तो उमर गुजरने को फ़क्त समय काफ़ी है! इश्क़ इबादत है क़यामत को असर होने को, युँ तो रोज़ का दुआ-सलाम काफ़ी है! वक्त साकी है हंसी ये शाम होने दो, लम्हों को छलकता जाम होने दो ! पैमाने में मत ड़ालो हर एक पल को, साथ को मेरे यूँ ही अंजाम होने दो! सफ़र ही बेहतर अपने, चाहे कुछ नाम रहने दो, मुसाफ़िर हमसफ़र हैं, रास्तों को काम रहने दो!   अकेलापन् गम हुआ तो क्या अकेलापन कम होगा? चंद लम्हे आँखॊं का मौसम जरा नम होगा, बदल जायेंगे रास्ते किसी मोड़ पर आकर पलक् झपकते बदला हुआ मौसम होगा! वक्त बीतेगा तो उनका भी गम कम होगा, मुस्कराएंगे तो वही मौसम होगा, 'सेल्फ़ी' ली कभी ज़ुल्फ़ लहरा के तस्वीर में एक खालीपन होगा! दूर है पर इतने भी मज़बुर नहीं‌ हैं, मालिक हैं वो मेरे, हुज़ूर नहीं हैं! नज़दीकियों के इतने मजबूर नहीं हैं, अपने ही हाथों से हम दूर नहीं है! युँ तो हम युँ भी मुस्कराते हैं, और बात है जब करीब आते हैं! हर साँस दिल को एक खबर देती है, हर खबर खुद को ढुंढते नज़र आते हैं!

ये क्या दौर है?

ये भी एक दौर है और वो भी... सच बदल जाते हैं, इरादों का क्या कहें? जहर खुराक बन गयी है जुबाँ नश्तर ये भी एक दौर है आसमाँ नयी ज़मीन है, सर के बल चाल है,  पैर नया सामान हैं ये भी एक दौर है मौसम कमरों के अंदर सुहाना है, ताज़ी हवा अब छुटटी बनी है बड़ा छिछोरा दौर है खूबसूरती अब रंग है, सेहत पैमानाबंद है ये तंगनज़र दौर है आज़ादी क्रेडिट कार्ड है सच्चाई फुल पेज़ इश्तेहार है ये बाज़ारू दौर है मोहब्बत सेल्फ़ी बन गयी है ज़ज्बात ई-मोज़ी हैं तन्हाई अब शोर है ये मशीनी दौर है सब कुछ तय चाहिए न खत्म होता डर चाहिए चौबीस सात खबर चाहिए बड़ा कमज़ोर दौर है भगवान अब फसाद है, मज़हब मवाद है, कड़वा स्वाद है इस दौर का ये तौर है  

भेड़चाल क्या सवाल?

चलो फ़िर एक साल हो गया पेड़ से टूटा जैसे कोई छाल किसी के हाथों इस्तेमाल कौन सी बड़ी बात है जैसे चल पड़ी कोई अटकी हुई रात है , या मुँह मांगी सौगात है चल दिये उठ कर जैसे कुछ खत्म हो गया जख्म किसका था फ़क़्त एक निशां हो गया तमाम उम्मीदें , चंद हालात , और बिखरे पल चलने को तैयार एक और झोला हो गया ! लम्हे अधुरे रह गये उनका क्या कीजे काबिल कश्तियों को तिनका का दीजे , बाकी सब ठीक है यारब मेरे , मनमर्ज़ी कायनात को पैजामा का कीजे ! दिन बदलने से तारीख़ नहीं बदलती , करवट लेने से तासीर नही बदलती , मंशा , ज़ज्बा , और तमाम कोशिशें गिनती से कोई तामीर नहीं बदलती ! भेड़चाल है, फ़िर क्यों सवाल है, मुबारक हो आपको नया साल है!

कुछ कुछ होता है!

सूरज खिलता है या की दिन पिघलता है, जलता है इरादा या की हाथ मलता है!  कुछ छुपा सा है, कुछ जगा सा है, कुछ उगा से है, कुछ सुबह सा है! कुछ इरादों सा, कुछ अधुरे वादों सा, कुछ उम्मीदों पे खरा, सच ज़रा ज़रा! कुछ मुस्कान, कुछ आसान, कुछ अंजान कुछ अपना सा लगे है और कुछ मेहमान! कुछ पूरा सा, कुछ अधूरा सा, कुछ जमूरा सा, आपकी नज़र है कुछ, कुछ सपना हुआ पूरा सा! कुछ रास्ते सा, कुछ मकाम तक, अजनबी है रोज, हररोज पहचान कर! कुछ बेबाक सच, कुछ बेखौफ़ कोशिश, कुछ हौसला अफ़ज़ाई कुछ हसीन कशिश!

न होने में

सुबह खो गयी कहीं सुबह होने में,  वक़्त गुज़रा नहीं फिर क्यॊं शाम होने में? तमाम मुश्किलें मेरे गुमनाम होने में वो रास्ते चलुं जो गुजरे मेरे खोने में करवटें अकेली रह गयी कहीं कोने मैं, उम्र गुजरेगी ये भी वह रात होने मैं दुरियां बड़ती है कितनी नज़दीक होने में, खो रहे हैं रिश्ते उम्मीद होने में, आप भी शामिल हैं मेरे होने में, खो गये हैं कहीं मेरे होने में, गुम है हर एक, कुछ और होने में, जाने क्या मुश्किल अपना होने में छुपी सारी रातें दिन के कोनॊं में थके सपने बैठे-बैठे बिछोनॊं में !! मैं हुँ मसरुफ़, अपने अधुरे होने में  मोड़ चाहिये रास्ते को सफ़र होने में

खुली दुकान है!

छलकते लम्हे वक्त को मुँह चिड़ाते हैं, घड़ीयों के चक्कर मे कहां कभी आते हैं! कांटे घड़ी के क्या समझें वक्त की नज़ाकत, युँ चल रहे हैं धुन में जैसे सदियॊं की कवायत! भगवान को भागवान करते हैं युँ जीने का सामान करते हैं अपने यकीन से जुदा हैं लोग इबादत को दुकान करते हैं! तन्हाई की दुकानें कितनी, खरीददार कोई नहीं, जज़बातों के बाजार में, अपना यार कोई नहीं ! ससुरे सच सारे, और हम बेचारे, लगाये ताक बैठे हैं देखें अब बारी आयी है सो,अब तक तो पाक बैठे हैं!  हालात सारे बेहया ससुर बने बैठे हैं हाल हमारे नयी दुल्हन बने बैठे हैं! बातॊं-बातॊं में आ गये आसमान तक, युँ ही कुछ देर और कुछ आसान कर! दुआ है कि दुनिया थोड़ी काली हो, रंग कोई भी, गाली न हो सच को इश्तेहार नहीं लगता, और रंग को कोई माली न हो! रंग बिखरे हैं कितने मुस्कानों में, जो रह जाते हैं अक्सर छुप कर बहानॊं में, चलो लटका दें कुछ मस्तियाँ दुकानों पे,   नज़र कहाँ जायेगी आसमानों पर!  वक़्त खोटा है इसके झांसे में न फ़सिये, दिन गिनना छोड़िये, जी भर के हंसिये! मैं और मेरी आवारगी, हालात की कारागिरी, अजनबी मौके हर मो...

रास्ते के कंकड़

फुर्सत के दिन, या दिन में फुर्सत नहीं, देखिये करवट लेती हैं हसरतें कहीं, दिल की हरकतों के क्या दाम कीजे शौक अच्छे हैं, काम मत कीजे! हम अपना सफर होँगे, अपने रास्तों का असर होँगे, मील का पत्थर नहीं बनना, काबिल हमसफ़र होँगे उनके देखने में कुछ ऐसा असर, तलाश करते हैं कहीं कोई कसर, उम्मीद को क्या समझाएं, नज़र-अंदाज़ हैं या अंदाज़-ए-नज़र ! खुद को खोना है, खुद को प्यार करना उम्मीद से आज़ाद हो, फिर यार करना आपने सपने चुने, और हम काबिल बनें? तस्वीर आपकी, रंग हम क्यों  बनें? अधूरे अल्फाज़ रास्ता भटकते हैं, कदम कब इनकी राह तकते हैं,, हो गए अजनबी अनगिनत लम्हे, अब हम आइना तकते हैं ! वक़्त चलता है, फिसलता है, टलता है, निकलता है मुश्किल हैं ऐसे लम्हे जब खुद का साथ मिलता है चलता है, मुड़ता है, मिलता है बदलता है आपके पैरों से ही रास्ता निकलता है.... ख़ामोशी रास्ता ढूंड लेगी, तुम साथ चलते रहना खुद तक पहुँच जाओ तो अपना सलाम कहना,

बिखरे गौहर!

बिखरे गौहर आराम थे फरमाते,  हाथ लगे सुराग, हैं अब नज़र आते   क्यों नापते हो रिश्तों कि लम्बाई क़त्ल तराश होना है, फिर क्यों तलाश हीरे कि तलब बेहतरीन है, तो क्या खाक इबादत पीरे कि मेरे होने में ही इश्क-ए-अज़ीज़ है  फिर क्यों आशुफ़्तगी है कसर ढूँढ कर कहते हो कि कोई कोताही खली है हमारा साथ मुकम्मल है, क्यों ये बात कल है जिन्दगी क्या सिर्फ लम्हों कि फसल है? हमारे साथ कि बेहतर ये आसानी है दुनिया गयी भाड़ में, आपकी हम से सारी परेशानी है  सोच लो हर पल एक लम्हा हो जायेगा गुजरा आँखों से मंजर हो जाएगा, जी लो आज को हर घडी, बीता, कौन जाने कब पिंजर हो जाएगा होंसला साथ हो भी तो, बिना यकीं क्या होगा,  नजर आसमान में सही  पैर जमीं पर होगा देख लो   बिखरे हुए रंग, तस्वीर फिर भी एक है उम्मीद आसमानों कि, इरादे पर भी नेक हैं नजरें चुरा कर नज़र आते हो ... अमां! क्यों अपने हुस्न से कतराते हो कातिल हो या खुद का शिकार,  नजरें बयां कर रही हैं कई अल्फाज़..  ये अंदाज़ है...