सुबह के बाद शाम जब मिलता हूँ खुद से , बड़ा अजनबी सा नज़र आता हूँ ! चलो कुछ नए अंदाज़ करते हैं , दो तीर कैसे तीरंदाज़ करते हैं ? आज मैं कुछ भी नहीं हूँ , ये शुरुवात अच्छी है ! हम मुफ़्त में बंट रहे हैं , लोग भीड़ से छंट रहे हैं कोई मोल करता है कोई अनमोल करता है जो भी करे ज़माना बहुत तौल करता है ! नए अंदाज़ होने को नए अलफ़ाज़ नाकाफी , रूख बदलो किसी हकीकत का फिर बोलो ! मैं वक्त के हाथों फिसलता जाता हूँ , हूँ वही पर बदलता जाता हूँ ! लड़ते-झगड़ते, बनते-बिगड़ते, संभल जाएँ तो शायरी है!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।