सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अंदाज़ लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरे अंदाज़ या अंदाज़न मैं?

सुबह के बाद शाम जब मिलता हूँ खुद से , बड़ा अजनबी सा नज़र आता हूँ !  चलो कुछ नए अंदाज़ करते हैं , दो तीर कैसे तीरंदाज़ करते हैं ?  आज मैं कुछ भी नहीं हूँ , ये शुरुवात अच्छी है !  हम मुफ़्त में बंट रहे हैं , लोग भीड़ से छंट रहे हैं कोई मोल करता है कोई अनमोल करता है जो भी करे ज़माना बहुत तौल करता है ! नए अंदाज़ होने को नए अलफ़ाज़ नाकाफी , रूख बदलो किसी हकीकत का फिर बोलो !  मैं वक्त के हाथों फिसलता जाता हूँ , हूँ वही पर बदलता जाता हूँ !  लड़ते-झगड़ते, बनते-बिगड़ते, संभल जाएँ तो शायरी है!

तुम भी न!

मुझको मेरे बारे में बतलाते हो, अब मैं क्या बतलाऊँ, तुम भी ना, कम सुनता हूँ ये बड़ी शिकायत है, फिर भी कितना कह देती हो, तुम भी न, इतने सवाल कहाँ से आ जाते हैं, यूँ तो रग-रग से वाकिफ़ हो, तुम भी न, उम्र हो गयी साथ सफ़र, जो जारी है, फिर भी तनहा हो जाती हो तुम भी न गुस्से से, कभी हार और और कभी प्यार से, अच्छा लगता है पास आती हो, तुम भी न, क्या जिस्मानी, क्या रूमानी या रूहानी, तुम फिर भी तुम ही रहती हो, तुम भी न, पूरी दुनिया अपनी है हर एक इंसाँ, फिर सामने तुम आती हो, तुम भी न! फितरत सब की पकड़ने की फितरत ये, मेरी बात मुझे कहती हो, तुम भी न मौसम बदला, बदलेंगे मिज़ाज़ भी, कम ज्यादा होंगे हम, तुम भी न