खेल - अब देखिए! मेरा अपने से बेजोड़ मेल , अपनी हिम्मत से दो - दो हाथ , डर के साथ , डर से बात कौन बड़ा? करने के डर और न करने का , आमने सामने खड़े हैं! ज़िंदगी के सारे सच टूट कर , पैरों तले पड़े हैं!! हारा कौन? जीता किससे? होंगे मशहूर मेरे किस्से!! क्या मुश्किल है? अपनेआप से हारना? या अपनेआप को मारना? फर्क है कुछ? कहीं? किसको? मैं जी रहा हूँ! किसके लिए? कोई कदम मेरे साथ? कोई पीठ पे हाथ? किसी की नज़र मुझ पर? या मैं बेनज़र हूँ? बेअसर? तमाम , हाथ , पैर , नाक , कान , मुँह की भीड़ में एक , अनेक? रोज़ का किस्सा? भीड़ का हिस्सा? मुझे दिखता है ….! मैं अब कहाँ हूँ! आप भी अब देखिए!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।